अपने दूर पास की भौगौलिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों को जानने समझने के लिए पर्यटन एक आसान रास्ता है । पर्यटन से दैनिक जीवन की एकरसता से जन्मी ऊब भी कुछ समय के लिए मिटने लगती है और हम कुछ हद तक तरोताजा भी महसूस करते हैं । यह ताजगी हमें भीतर से स्वस्थ भी करती है और हम तनाव से दूर होते हैं । रायगढ़ वासियों को पर्यटन करना हो वह भी रायगढ़ के आसपास तो झट से एक नाम याद आता है कोयलीघोघर!
कोयलीघोघर ओड़िसा के झारसुगड़ा जिले का एक प्रसिद्द पिकनिक स्पॉट है जहां रायगढ़ से एक घंटे में सड़क मार्ग की यात्रा कर बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है । शोर्ट कट रास्ता अपनाते हुए रायगढ़ से लोइंग, बनोरा, बेलेरिया होते ओड़िसा के बासनपाली गाँव में आप प्रवेश करते हैं फिर वहां से निकल कर भीखमपाली के पूर्व पड़ने वाले एक चौक पर जाकर रायगढ़ झारसुगड़ा मुख्य सड़क को पकड लेते हैं। इस मुख्य सड़क पर चलते हुए भीखम पाली के बाद पचगांव नामक जगह आती है जहाँ खाने पीने की चीजें मिल जाती हैं। यहाँ के लोकल बने पेड़े बहुत प्रसिद्द हैं जिसका स्वाद कुछ देर रूककर लिया जा सकता है ।
पचगांव से चलकर आधे घंटे बाद कुरेमाल का ढाबा पड़ता है , वहां रूककर भोजन भी किया जा सकता है । कुरेमाल से लगभग दस मिनट बाद मुख्य सड़क से बायीं ओर एक सड़क कटती है जहाँ कोयली घोघर गाँव का बोर्ड आपको दिखाई पड़ता है । इसी सड़क पर चलते हुए आपको लगने लगता है जैसे आप बस्तर के जंगलों की तरफ जाने लगे हों।कोयली घोघर तक लगभग छः किलोमीटर की यह यात्रा हमारी आँखों को हरे भरे दृश्यों से भरकर बहुत सुकून पहुंचाती है।
कोयली घोघर की बड़ी बड़ी चट्टानें और उनमें से होकर बहता झरना एक सुन्दर दृश्य रचते हैं । यहाँ आपको पानी में तैरते बतख अपनी सुन्दरता से लुभाते हैं । यहाँ पहाड़ियों से घिरी चारों तरफ की हरी भरी वादियाँ आकर्षित करने लगती हैं । यहाँ निर्मित आश्रमों में स्थायी रूप से साधु संतों का निवास है इसलिए रात दिन भजन कीर्तन का आनंद भी लिया जा सकता है । कहा जाता है कि पहले घनघोर जंगल में कोई साधु आकर यहाँ ध्यान करने लगा । फिर धीरे धीरे लोगों को इस बात की जानकारी हुई और साधु के पास लोगों का आना जाना प्रारंभ हुआ। आगे चलकर इस जगह की पहचान एक धार्मिक और शांतिप्रिय जगह के रूप में हुई । कालांतर में यहाँ एक ट्रस्ट बना और फिर उसके माध्यम से यहाँ के मंदिर और आश्रमों का निर्माण होने लगा । यहाँ के शिव मंदिर के साथ साथ छोड़े बड़े अन्य मंदिरों की परिक्रमा का आनंद एक नया अनुभव देता है। यहाँ आकर प्रकृति से भी हमारा एक रिश्ता बनता है। यहाँ आकर चाहें तो स्नान करने का आनंद भी आप ले सकते हैं। आसपास कई जगहें हैं जहां आगंतुक पर्यटक भोजन पकाकर पिकनिक जैसा आनंद लेते हैं। यहाँ नाच गाने का आनंद उठाते हुए भी पर्यटकों को देखा जा सकता है। बहुत ऊंची ऊंची चट्टानों के ऊपर से झरने का बहकर नीचे गहरी खाई में गिरना बहुत सुन्दर लगता है । बहुत दुस्साहसी लोगों को चट्टान के ऊपर से गहरी खाई में छलांग लगाते हुए भी यहाँ देखा जा सकता है जो थोड़ा रिस्की लगता है। अगर आप बारिश में यहाँ कभी जाते हैं तो वहां के दृश्यों का और आनंद उठा सकते हैं ।
एक ही बात जो यहां अच्छी नहीं लगती वह यह है कि कुछ लोग पिकनिक के नाम पर माँस पकाकर खाते हैं और कई बार नशापान करते हुए भी उन्हें देखा गया है। ओड़िसा सरकार को इन चीजों पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए।
महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला भी लगता है और लोगों की भीड़ आती है ।
जंगल के बीच दुकानों का सजना देखकर ऐसा लगता है जैसे बाज़ार के जंगलों तक पहुँचने की कोई कहानी लिखी जा रही हो । इस कहानी को पढने सुनने के लिए रायगढ़ से लोग यहाँ पहुँच जाते हैं। ये जगह छत्तीसगढ़ और ओड़िसा को सांस्कृतिक स्तर पर जोड़ती भी है ।
रमेश शर्मा
मो.7722975017
सुन्दर अनुग्रह, कोइलीघोघर का नाम सुनते ही मन में पुरानी यादें उमड़ सी आती है, बचपन के दिनों में हर साल शिवरात्रि मेला मे दोस्तो के जाना होता था 🙏🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
हटाएंबहुत अच्छी जगह
हटाएंआपका नजरिया सही दिशा मे जाता है मैं भी कई बार इस जगह गया हूं पर आप कई जानकारी एकत्रित कर लेते हैं
हटाएंबहुत सुंदर संस्मरण सर जी
जवाब देंहटाएंकोइली घाघर के विषय मे बहुत बार सुना, जब से रायगढ़ आया हूँ, किन्तु अभी तक न जा सका, शीघ्र ही योजना बनाता हूँ। बहुत सुंदर वर्णन करके आपने हमारी लालसा बढा दी , हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजी। एक बार जाकर घूम आएं।
हटाएंबहुत सुना था सर आपने जिस तरह जीवंत वर्णन किया है लगा की घूम ही आया हूं
जवाब देंहटाएंजाता हूं समय निकालकर
भीखम पाली बहुत बार गया हूं
महानदी का बैक वाटर और वहां डोंगाघाट में पिकनिक मनाने जाते रहे हैं
पचगांव तक भी कई बार गया हूं इस बार यहां जाऊंगा
बहुत बहुत सुन्दर आलेख शर्मा जी,पूर्व की भांति इसमें भी काफी जानकारियां मिलीं,हार्दिक शुभकामनाएं
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