आदित्य अभिनव की कहानियों ने हाल के वर्षों में पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उनकी कई कहानियां प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में इन दिनों प्रकाशित भी हुई हैं।
यहां ली गई उनकी कहानी "गोधूलि" मध्यवर्गीय परिवारों में व्याप्त परंपरागत समस्याओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करती है।ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवारों में बुजुर्गों का जीवन बहुत ऊबड़ खाबड़ भरे रास्तों से होकर गुजरता है।कई बार पीढ़ियों के बीच सामंजस्य का अभाव चरम पर होता है। इतना कि उनके बीच रिश्तों के लिए कोई स्पेस ही नहीं बचा रह जाता।अलगाव ही एक मात्र रास्ता रह जाता है। खासकर वे बुजुर्ग जो पत्नी के गुजर जाने के बाद अपने जीवन में बहुत अकेले हो चुके होते हैं , उनके जीवन की गाड़ी पटरी से उतरने लग जाती है।इस कहानी में अमरकांत भी ऐसे ही बुजुर्ग हैं जो अकेलेपन का दंश झेलते हुए बहु बेटे के साथ किसी तरह जीवन की गाड़ी को खींच कर ले जा रहे हैं। पर उसे आगे और खींच कर ले जाना संभव नहीं लग रहा।
जीवन की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए कई बार मनुष्य को लगभग अस्वीकार्य रास्तों पर भी चलना पड़ता है। जीवन में आपसी प्यार , समर्पण और संवेदना का प्रवेश कई बार समाज में अस्वीकार्य रास्तों के जरिये भी होता है जो अंततः मनुष्य के जीवन का सहारा बन जाते हैं।
अमरकांत बाबू अपने जीवन के उत्तरार्ध में जिन रास्तों को पकड़ते हुए अपने त्रास भरे जीवन को पटरी पर ले आने की कोशिश करते हैं, वह रास्ता मध्यवर्गीय समाज में लगभग अस्वीकार्यता का रास्ता है। इस संदर्भ में यह कहानी एक नई बहस की ओर हमें ले जाती है । कहानी में एक गहरा संदेश यह भी है कि जीवन आपसी समर्पण, प्यार और संवेदना के बिना नहीं चल सकता। इन जीवन तत्वों की प्राप्ति के लिए कई बार मनुष्य को वर्जनाओं की दीवारों को लांघना भी पड़ता है।
गोधूलि
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अमरकांत बाबू अभी-अभी मोर्निंग वॉक से आए थे। उन्होंने अपने मकान के अहाते में कदम रखा ही था कि उन्हें एक गेंदा का पौधा गिरा हुआ दिखाई दिया। वे पौधे के ऊपर मिट्टी डालकर सीधा खड़ा कर रहे थे कि बगल के कमरे से बहू अंकिता की आवाज सुनकर ठिठक गए।
“ देखो शशि ! मुझसे अब ये सब नहीं होगा - - -- ।‘’
“आखिर हुआ क्या ?’’
“ हूँह --- -- हुआ क्या -- - - मुझसे मत पूछो- - - - बस - - - बहुत -- - हो गया - - - - अब इस घर में यदि तुम्हारे पिता जी रहेंगे तो मैं नहीं रहूँगी - - -- एक तो सुबह उठते ही जानवर की तरह पिल पड़ो काम पर - - - किचेन- - - नाश्ता - - - खाना - - - बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना - - - - फिर भागे-भागे 10 बजे तक बैंक पहुँचो - - - बैंक में मरो - - - - पाँच बजे तक -- - - चुसे हुए नींबू की भाँति घर आओ तो -- - - महाराज जी बैठे हैं गार्डेन में ठाट से चेयर लगा कर तीन चार दोस्तों के साथ - - - चल रही है गप्पबाजी -- - - - नेहा - - - जरा मम्मी को बोलना पाँच कप चाय बनाए - - - - - अच्छा तो क्या बोल रहे थे श्रीवास्तव जी - - - - - - वाह भई वाह - - जैसे हम तो मशीन ठहरे- - - - हमें तो आराम चाहिए ही नही - - - - ।‘’
“ अकी ! वे हमारे पिता जी हैं , आखिर इस उम्र में अब कहाँ जायेंगे।‘’
“ चाहे जहाँ भी जाएं अब - - यहाँ मैं नहीं - - - - - ।‘’
“ अरे भई -- - अकी ! तुम समझा करो आखिर 48 हजार पेंशन भी तो आता है उनका।‘’
“ 48 हजार पेंशन-- - नहीं चाहिए उनका एक भी रुपया हमें - - - बस चैन चाहिए - - - चैन - - - - - चैन की जिंदगी -- - - वैसे भी दिनभर जब देखो तब खाँसते ही रहते हैं कहीं दीपू और नेहा को कहीं कुछ हो गया तो - - - नहीं - - -- बा -- - बा - - नहीं ! भगवान् बचाए ऐसे मुसीबत से, मैं हाथ जोड़ती हूँ भाई- - - अब - - बस - - - बहुत हो गया।‘’
“मेरी बात सुनो, अकी ! भला इस बुढ़ापे में -- - - - और कुछ नहीं तो उनके बुढ़ापे का तो ख्याल करो - - - -अकी ! डियर - - समझो तुम ।‘’
“ बुढ़ापा - - तुम बुढ़ापे की बात करते हो - - - हूँह - - - अकड़ देखी है तुमने -- - और बातें तो सुनो - - - वही अफसरी अंदाज - - परसों की ही बात है। मेरे बॉस आए थे चाय पर - - - आ गए अपने अफसरी ठाट में - - - लगे फेकनें- - - मैं - - सड़गुजा में फ़ोरेस्ट ऑफीसर था तो इस स्मगलर को पकड़ा -- - - तो उस स्मगलर को काउण्टर किया -- - ये किया तो वो किया -- - पका दिया उनको सुना सुना कर। कल ही बॉस कह रहे थे कि आपके ससुर भी खूब हाँकते हैं - -- - तुम ही बोलो भला मैं क्या कहती ? अरे - - भई - - बूढ़ा गए हो तो बूढ़े की तरह रहो - - - लेकिन ये काहे को मानेंगे - - - अभी भी शौक सब वही है - - ठाठ-बाट-रुआब वही है - - - मैं कोई नौकरानी नहीं हूँ - -- - - -बता दे रही हूँ - - - यदि तुम नहीं बोलोगे तो - - - मैं ही साफ-साफ कह दूँगी कि जहाँगीराबाद वाले मकान में चले जाएं-- - बाप-दादे का पुराना मकान है - - अभी तो कोई किरायादार भी नहीं लगा है।‘’
“ अकी ! प्लीज तुम समझने का प्रयास करो, आखिर इस उम्र में पिताजी अकेले भला कैसे रहेंगे, माँ होती तो बात कुछ और थी ।‘’
“ शशि ! तुम भी न - - अजीब प्राणी हो - - तो ठीक है लादे रहो सिर पर बोझा - - - -अरे भई - - रास्ते निकालने से ही तो रास्ता निकलता है - - - खाना ही बनाना है न -- - तो ठीक कर दो -- बाई - - दोनो टाइम आकर खाना बना दिया करेगी। रहें वही - -करें अड्डाबाजी -- - - - मैं तो हार मान गई - -ना - - रे बा—बा ना मैं तो हाथ जोड़ती हूँ - - छोड़ें हमे रहने दें चैन से –- - - मुक्ति दें हमें - -मुक्ति- - - । ‘’ बहु अंकिता ने इतने जोर से हाथ जोड़ा कि उसकी आवाज गार्डेन तक सुनाई पड़ी।
“ अकी ! - - - - ।‘’ शशि भूषण कुछ बोले उसके पहले ही पैर पटकते हुए अंकिता किचेन में चली गई।
अमरकांत बाबू की स्थिति उस कटे हुए वृक्ष की तरह थी जो कुल्हाड़ी के अब एक ही प्रहार से गिरने वाला हो। उन्होंने किसी तरह अपने आप को सम्भाला। वे चुपचाप अपनी कोठरी में आ, कुर्सी पर धम्म से बैठ गए। उनका सिर चकराने लगा। उनकी आँखें बंद हो गईं .......
“ शशि के पापा ! आप इस तरह सुबह-सुबह क्यों सो रहे हैं ?’’ उलाहना भरा मृदुल स्वर था।
“ अच्छा तो आप - - - बहू की बातों पर सोच रहे हैं - - - मैं कहती थी न कि आपकी यह ठाठ-बाट – लाटसाहिबी मेरे तक ही है। मेरी आँखें बंद हुईं कि आपका यहाँ दो दिन भी गुजारा नहीं -- - - -।‘’
“ अरे - - शशि के पापा ! आप इस तरह तो टूटने वाले पुरुष नहीं हैं फिर आप इतना मायूस - - - उदास- -- टूट गए - - - चलिए उठिए -- - थोड़ा घुम-फिर आईए -- - आप तो पक्का लोहा हैं - - - इस तरह कच्चा मत बनिए - - - ।‘’
अमरकांत बाबू ने अपने बाँये कंधे पर चिर परिचित स्नेहिल स्पर्श का अनुभव किया । उन्होंने अपने दाहिने हाथ से उस कोमल हथेली को पकड़ने का प्रयास किया , लेकिन वह हथेली वहाँ नहीं थी। उन्होंने सिर को झटकते हुए अपनी आँखें खोली। तीन माह पहले दिवंगत हुई पत्नी सुमित्रा का फ्रेम किया हुआ फोटो सामने टेबुल पर मुस्कुरा रहा था। उन्होंने अपने ऑफिस ले जाने वाले बैग जिसमें वे सारे जरुरी कागजात रखते थे, में उस फोटो को डाला और धीरे-से कमरे से बाहर निकल गए। एक क्षण के लिए ठिठके और भरपूर निगाह से पूरे मकान को देखा, फिर तेजी से डग भरते हुए चल दिए।
अमरकांत बाबू का इकलौता बेटा शशिभूषण आइ. आइ. टी. खड़गपुर से बी. टेक.( आइ. टी. ) करने के बाद भोपाल में ही मल्टी नेशनल कम्पनी मे प्रोग्रामर है और उसकी पत्नी अंकिता वहीं केनरा बैंक में क्लर्क। दो साल पहले ही रिटायरमेंट के बाद वे यहाँ आए थे। उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनका बेटा उनके ही गृह नगर में जॉब पाया है। उनके बाप-दादे का पुश्तैनी मकान भी था भोपाल के जहाँगीराबाद मुहल्ले में, लेकिन बेटे ने एक डुप्लेक्श अरेरा कॉलोनी पॉश एरिया में खरीद लिया था जिसका आधा अमाउण्ट उन्होंने ही दिया था। पत्नी सुमित्रा गठिया से लाचार हो गई थी। वह पैतालिस की उम्र में मीनोपोज के बाद से ही दिन-ब-दिन अस्वस्थ होती चली गई थी। अस्वस्थता के बाद भी वह उनके जीवन का बहुत बड़ा सहारा थी। उनके हर हिटलरशाही फरमान को पूरा करने की हरसंभव कोशिश करती। भोपाल में अकेले रहकर बेटे की पढाई –लिखाई सम्भाला,U नहीं तो वे कहाँ --- - यह सब कर पाते --- सतपुड़ा, बालाघाट , शहडोल और झाबुआ की जंगलों में रहते हुए।
सड़क के किनारे वे एक स्थिर गति से चल रहे थे लेकिन उनका दिल-दिमाग बड़ी तेजी से चल रहा था ......... निर्मला - - - हाँ - - - - निर्मला ही नाम बताया था उसने। पहली बार जब उन्हें वह मिली थी, कहा था इंदौर की हूँ ’। उसके नम्बर का एस. एम. एस. आया था। एक मित्र के मित्र ने भेजा था। एमाउण्ट पहले ही चेक से पेमेंट हो चुका था। पहली बार नौ हजार एक रात का। वे चिनार पार्क के मुख्य द्वार पर उसका इंतजार कर रहे थे। गर्मी के दिन -- - शाम के सात बज रहे थे - -सूरज डूबने वाला था। वह कैब से उतरी और उनके सामने आकर खड़ी हो गई। उसने सलीके-से साड़ी पहन रखा था , दोनों कलाइयों में लाल-लाल चुड़ियाँ थीं , गले में मंगलसूत्र लटक रहा था। कोई शादी-शुदा महिला है -- - उससे बात करने की हिम्मत उन्हें नहीं हुई थी। लगभग पाँच मिनट तक चुप्पी बनी रही। फिर उसने कहा “ आप मिस्टर अमरकांत - - -- ?
“ हाँ-- - हाँ - - - मैं --- मिस्टर अमरकांत- - - - - ?’’
“ --- - मैं - - -निर्मला - - -‘’ कहते हुए वह मुस्कुराई । फिर उसने कहा “ चलें --- --।‘’
होटल वे दोनों पति-पत्नी के रूप में पहुँचे थे। कमरे की चाभी लेकर आगे-आगे चल रहे होटल बॉय को भी संदेह नहीं हुआ था। कमरे में पहुँचने के बाद वे अटैच्ड बाथरूम में फ्रेश होने चले गए थे। फ्रेश होकर जब बाहर आए तो उन्होंने देखा -- - - उसका दूसरा ही रूप - - --झीनी-झीनी नाइटी में उसका मादक रूप झलक रहा था - - - अंग-अंग से कामुकता टपक रही थी - - मदभरी नशीली आँखों से प्रणय की मदिरा छलक रही थी - - - पारदर्शी अंतर्वस्त्र की मनमोहकता बरबस अपनी ओर खींच रही थी - - । वे उसे एकटक हो देखते रह गए थे। उसका शादी-शुदा सद्गृहस्थिन वाला रूप कहाँ चला गया ? उसकी इस छवि को देखकर वे हैरान हो गए थे। उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
वह मोबाइल पर बात कर रही थी
“ माँ ! तुम समय पर दवा ले लेना , आज मैं बिजनेस टूर के कारण नहीं आ पाऊँगी ।‘’
“ हाँ – हाँ – ठीक – ठीक - -- - अच्छा - - माँ – अपना ध्यान रखना -- -गुड नाइट ।‘’ कहते हुए उसने मोबाइल साइलेंट पर डाल दिया था।
हर तीसरे-चौथे महीने उन्हें अपने मित्र के मित्र की आवश्यकता पड़ती थी। संयोग ऐसा हुआ कि छ: बार के ट्रीप में चार बार वही यानी निर्मला ही आई थी। इस तरह धीरे-धीरे निर्मला से उनका लगाव-सा हो गया । दूसरे के साथ उनके मन के तार नहीं जुड़ पाते थे । निर्मला में कुछ ऐसा था जो उन्हें अपनी ओर खींचता था । एक बार उन्होंने निर्मला से पूछा “ तुम्हें तो एक रात के आठ-नौ हजार मिल जाते हैं - - - चलो यह भी ठीक है।‘’
निर्मला ने कहा था “ क्या कहते हैं - - सर - - ! मुझे तो प्रत्येक ग्राहक से दो हजार से ढाई हजार ही मिलता है । ’’
इसके बाद से उन्होंने निर्मला को डायरेक्ट कॉल करना शुरु कर दिया था।
एक रात होटल में -- - दो बज रहे होंगे । उनकी नींद खुली तो देखा कि निर्मला बैठी हुई है और उनके चेहरे को एकटक निहार रही है - - - - । ‘’ वे उठकर बैठ गए थे।
“ क्या- - - —देख रही हो ? ‘’
“ कुछ नहीं - - - बस यूँ -- - ही -- -।‘’
“ अच्छा - - एक बात पूछूँ - -- बताओगी ?’’
“ हाँ – पूछिए - -- ।‘’
“ क्या तुम्हें किसी की बहन , बीवी और माँ बनने की इच्छा नहीं होती ? ‘’
“ अमर बाबू ! बहन बनने का नसीब किसी कॉल गर्ल के पास नहीं होता - -- बस बीवी बनने का छोटा-सा सपना होता है - - - वह सपना भी कुछ बरसों तक आँखों में रहकर खुद ही मर जाता है - - - जब बीवी ही नहीं बनी तो -- - - फिर माँ बनने का सपना - - - तो - --- - -।‘’ उसने लम्बी आह भरते हुए कहा।
निर्मला ने उन्हें एक नजर सिर से पैर तक देखा “ अमर बाबू ! दुनिया हमें बाजारू औरत समझती है - - - हाँ बाजारू - - - पर बाजारू औरत के मन में भी कभी ऐसी हूक उठती है कि उसका कोई हो - - - कोई अपना जिसे वह निकट से महसूस कर सके -- - - खैर छोड़िए - - - आप – सोइए - - - सुबह जल्दी निकल चलना है -- -।‘’ कहते हुए उसने चादर तान ली।
अमरकांत बाबू द्वारिकापुरी कॉलनी के राम मंदिर चौराहा से चौथी गली के तीसरे मकान के सामने खड़े हो गए। सी- 32 -- -हाँ -- - - यही तो बताया था निर्मला ने । पुराने ढंग का मकान - -- मकान के आगे छ: फीट का रोड था। दरवाजे से दो फीट की दूरी पर से ही नाला बह रहा था। बहुत दिनों से साफ नहीं किए जाने के कारण नाले का कीचड़ काला पड़ गया था। मच्छर भिनभिना रहे थे। दो मिनट तक वे दरवाजे पर खड़े रहे । मच्छरों ने हमला बोल दिया। तीन-चार बार उनका हाथ मच्छरों को मारने के लिए घुटनों के नीचे तक जा चुका था। उन्होंने दरवाजा खटखटाया -- - - कुछ भी आवाज नहीं आई। थोड़ी देर बाद फिर से दरवाजा खटखटाया -- - -
“ कौन ? - - - निर्मला -- - - दवा मिल गयी - - बेटी - - - ?’’ एक हल्की काँपती आवाज सुनाई दी।
दरवाजा भीतर से खुला हुआ था । वे धीरे से भीतर आ गए ।
“ बड़ी देर कर दी - - - बेटी -- - ।‘’
“ मैं - - ।‘’
“ मैं - - कौन - - ?’’
“ मैं -- -- मैं - -निर्मला का दोस्त हूँ - - - मिलने आया हूँ - - ।‘’
वे कमरे से आ रही आवाज की तरफ बढ़े। पुरानी-टूटी चारपाई पर एक वृद्धा पड़ी हुई थी। ऐसा लगता था मानो वह महीनों से बीमार हो - - शरीर के नाम पर हड्डी की ठठरी मात्र - - आँखें कोटरों से झाँक रही थीं - - - सफेद बाल उलझ कर गंदी-मटमैली लटें बनी हुई - - गाल सूज गए थे - - -चेहरा अजीब डरावना लग रहा था। उन्हें लगा चारपाई पर पड़ी यह मौत से कुछ ही कदम दूर है ।‘’
‘ बैठो - - बेटा --- - क्या नाम है तुम्हारा ? ‘’ उसने धीरे से कराहते हुए कहा ।
“ अमरकांत - - - आंटी -- अमर - - कांत - - - ।‘’
“ चलो – अच्छा हुआ - - -तुम आए इससे मिलने। अब कोई नहीं आता - -बेटा -- इससे मिलने – -जब से इसकी कम्पनी को नुकसान हुआ है - - -घाटे में चल रही है - - ।‘’
“ क्या - - - - क्या कह रही हैं -- - आंटी - - आप ? ‘’
“ अरे -- - बेटा - - तुम तो सब जानते ही होगे - - -निर्मला सेल्स एक्जेक्युटीव है --- लेकिन अब तो कम्पनी ही बंद होने के कगार पर है - -- भला - - क्या करे - - वह भी -- -! यदि इसकी शादी हो गई होती - -तो मुझे चिंता नहीं होती - - --बेटा - - ।‘’
“ शादी - - ?’’
“ हाँ - - - बेटा - - ! निर्मला की शादी- - अरे – कौन-सी ज्यादा उम्र हो गई है मेरी बेटी की -- -- - आजकल तो 30-32 की उम्र में शादी ही होती है लड़के-लड़ड़ियों की - - - ।‘’
“ सो तो ठीक है आंटी - - - लेकिन - - निर्मला की उम्र तो - - - लगभग- - - ।‘’
“ अच्छा – बेटा - - - तुम्हारी नजर में कोई लड़का है तो - -बात चलाओ - - -मैं -- - मरने से पहले - - उसकी शादी - - - ।‘’ कहते ही वह बेहोश हो गई।
वे जाने के लिए खड़े ही हुए थे कि दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई । निर्मला हाथ में झोला लिए अंदर आ गई थी ।
“ अमर बाबू ! आप - - - ? निर्मला के स्वर मे आश्चर्य था ।
“ हाँ - - - निर्मला ! बहुत दिन हो गए थे - - - सोचा मिल लूँ -- - तुमसे - - अच्छा बताओ - - कैसी हो ?’’
“ बस ठीक हूँ - - - ।‘’ उसके स्वर में ढेर सारा दर्द उभर आया था।
“ आप माँ से मिले हैं क्या -- ?
“ हाँ - - - मैं आया था तो - - आंटी जगी हुई थी -- - - लेकिन अब लगता है वे बेहोश हो गई हैं ।‘’
“ सही कह रहे हैं आप - - - पता नहीं कब बेहोश हो जाए - - - कब होश में आ जाए - - - - माँ- - - - - कभी-कभी तो हप्तों बेहोश पड़ी रहती है --- ।‘’
“ क्या कह रही थी -- - ?’’
“ तुम्हारी शादी की बात कर रही थी - - - कह रही थी - - कोई लड़का - - - - ।‘’
“ क्या कहें - - अमर बाबू ! माँ को बस मेरी शादी की चिंता लगी हुई है। जब भी होश में आती है - - वही राग - - - शादी - - शादी -- - शादी - - - - - अब आप ही बताइए मुझ बावन-तिरपन साल की बुढ़िया से कौन शादी करेगा - - मिनोपोज हुए भी छ: साल हो गए हैं -- - - और उसे है कि शादी - - - शादी - -- अमर बाबू - - कुछ लड़कियों की किस्मत में शादी का लाल जोड़ा नहीं होता है - -- हाँ - - - सपने में जरूर अपने को दुल्हन के रूप में सँजी-धजी देखती हूँ - - - देखती हूँ कोई मेरी मांग में सिंदूर भर रहा है - - - उसके साथ पवित्र अग्नि के सात फेरे ले रही हूँ - - - पर नींद खुलते ही - - - - खैर छोड़िए - - -अमर बाबू -- - अब क्या रखा है इन बातों में - -- - ।‘’ भीतर की उमड़ती पीड़ा से उसका स्वर काँपने लगा था।
“ जानते हैं -- - अमर बाबू ! डॉक्टर ने कहा है कि कोई ग्रंथि इनके अंदर है जो इन्हें न जीने दे रही है , न मरने -- - ।‘’ वह अपनी रौ में बोले जा रही थी।
“ अमर बाबू ! आपसे तो कुछ छुपा नहीं है। आप तो मुझे पिछले बीस साल से जानते हैं। वो भी एक समय था - - मेरे एक कॉल पर एक साथ कई एजेंट दौड़े चले आते थे । अब उन्हीं एजेंटों ने मेरा नम्बर ब्लॉक कर दिया है। अब तो – माँ यदि होश में होती है तो ऑफिस कह कर जाती हूँ - - - और - - पचास--- - - सौ - - भी कोई दे दे - - तो - - तैयार- - - -- - - - । माँ तो खैर आज नहीं तो कल चली जायेगी - - - मैं - -अपने आगे की सोचती हूँ - - - - क्या होगा मेरा ? -- - कैसे कटेगी यह जिंदगी - - - ?’’ उसने अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक लिया।
“ चलो - - आंटी के पास - - - ।‘’ अमरकांत बाबू ने उसे हाथ पकड़कर उठाया।
वे चारपाई के सामने खड़े हो गए ।
“आंटी-- ! ‘’
“ हाँ - - हाँ - - - बेटा ! - बोलो - -- - लड़का मिल गया क्या ? ‘’ वह बड़बड़ाई -- - उनकी बंद आँखों की पलकें उठीं और गिरीं।
“ हाँ -- - आंटी ! मिल गया है लड़का - - - ।‘’
“ कहाँ - - है - - ले आओ – न ।‘’ होठ थरथराये ।
“ आंटी ! सामने मेरी तरफ देखिए -- - ।‘’ कोटरों में धँसी आँखें चमक उठी। सिर हल्का-सा ऊपर उठा।
“ आंटी ! मैं अमरकांत सक्सेना आपकी बेटी निर्मला से विवाह करूँगा । क्या आप अपनी बेटी का हाथ मुझे देंगी ? ‘’
“ हाँ - - हाँ - - हाँ - - बेटा - -- हाँ - - -- ।‘’ कहते हुए आवेश में उसने दोनों बाँहें फैलाकर उठने की कोशिश की । उठती गर्दन और फैलती बाँहें धम्म से चारपाई पर गिर पड़ीं । सिर एक तरफ लटक गया।
आज अमरकांत बाबू को घर से गए छठा दिन था। शशिभूषण सुबह गेट से न्यूज पेपर लेकर आ रहे थे तब देखा कि लेटर बॉक्स में एक पीला लिफाफा पड़ा है। लेटर बॉक्स खोला - - अरे - -यह तो विवाह का निमंत्रण कार्ड है। पीले रंग के लिफाफे में निमंत्रण पत्र के साथ एक पत्र भी था । लिखावट पिता जी की थी - - -
प्रिय बेटे ,
सदा खुश रहो
तुम्हारी माँ ठीक कहा करती थी कि ये ठसक जब तक मैं हूँ तभी तक है। मेरे नहीं रहने पर आपका एक दिन भी गुजारा इस घर में नहीं हो सकेगा । खैर , तुम्हारी पत्नी ने तो सुमित्रा के मरने के बाद तीन महीनें तक मेरी सनक को झेला। बेटे - - - मैंने तुझे हर खुशी दी है। अब इस गोधूलि बेला में मैं तुम्हें दु:खी नहीं देख सकता -- - - वो भी अपनी वजह से -- - - इसलिए मैं तुम्हारा घर छोड़कर आ गया हूँ अपने पैतृक घर । अपने साथ वहाँ से एक ही चीज लाया हूँ , वह है सुमित्रा की फोटो। बेटे- - - तुम चिंतित मत होना, नहीं तो मेरे साथ-साथ तुम्हारी स्वर्गीय माँ भी दु:खी होगी। तुम्हारी माँ की तरह मेरा ख्याल तो कोई नहीं कर सकता, फिर भी मैं और निर्मला कोशिश करेंगे एक दूसरे को सम्भालने की। सदा खुश रहना -- - प्रसन्न रहना-- -बहु और बच्चों को खुश रखना। तुम्हें , बहु अंकिता ,पोते दीपू और पोती नेहा को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद- - - - !
तुम्हारा पिता
अमरकांत
निमंत्रण पत्र पर छपा था ---
Amarkaant
Weds
Nirmala
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जीवन परिचय
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नाम – आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव जन्म तिथि - 30 जून ,1970जन्म स्थान – ग्राम – भटगाई , जिला – छपरा( सारण ) , बिहार – 841424
प्रकशित पुस्तकें –
शोध प्रबंध – ‘’ प्रपत्तिपरक गीतों की परम्परा और निराला के प्रपत्तिपरक गीत ‘’ ( 2012)
कहानी संग्रह - ‘ रुका न पंछी पिंजरे में ’ ( 2022 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन , नई दिल्ली
‘मजबूर’ ( 2023 ) ए. आर. पब्लिकेशन , नई दिल्ली
काव्य संग्रह – ‘सृजन के गीत ’ ( 2018 ) , ब्लू रोज प्रकाशन , नई दिल्ली
“ सृजन संगी ‘’ ( साँझा काव्य संकलन ) ( प्रकाशन वर्ष 2006) ,
“हाँ ! मैं मज़दूर हूँ ‘’ ( साझा काव्य संग्रह) ( प्रकाशन वर्ष 2020 )
“ अंकुर अनंत का ”( 2022) लोक रंजन प्रकाशन , प्रयागराज
आलोचना - ‘ भक्त कवि निराला ’ ( प्रकाशनाधीन )
संपादित पुस्तक –
“समकालीन हिन्दी की श्रेष्ठ कहानियाँ ‘’ (2022 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली
“ विश्व की श्रेष्ठ कहनियाँ ‘’ ( 2022) एकेडेमिक बुक्स इंडिया , नई दिल्ली
समीक्षात्मक आलेख – “ वैदिक एवं उपनिषद् साहित्य और निराला’’ (2013) , “
विशिष्टाद्वैत और निराला ‘’ (2013), “ निराला के भक्ति पर तुलसी का प्रभाव ‘’ (2014), “
प्रपत्ति : अर्थ और स्वरूप ‘’ (2014) , “ शांकर वेदांत और निराला ‘’ (2014) ,
“ शमशेर की कविता : अतियथार्थवादी रूप में’’ (2015) , “ निराला के प्रपत्तिपरक गीतों के दार्शनिक
आधार ‘’(2015) , “ पारसी थियेटर का भारत में नया स्वरूप ‘’ (2015) , “ भूमण्डलीकरण ,
भारतीय किसान और हिंदी साहित्य ‘’ (2015) , “ उसने कहा था : एक कालजयी कहानी ‘’
(2016) , “ सूर साहित्य में लोक गीत और लोक नृत्य ‘’ (2018) ,
“ दिनकर के काव्य में क्रांति और विद्रोह का स्वर ‘’ (2019) ,” दिनकर के काव्य में सर्प
बिम्ब ‘’ (2020) , “ पौराणिक नगर : शोणितपुर’’ ( 2020) , “ आचार्य महावीर प्रसाद
द्विवेदी और निराला ‘’ (2021) , “ अपने अपने अजनबी : पुनरावलोकन’’ (2021) , “
असगर वजाहत : प्रेमचंद और मंटो का सुखद मिश्रण ‘’ ( 2022) , “ विश्व क्षितिज
पर हिंदी ‘’ ( 2022) , “ प्रेमचंद और राष्ट्रीय आंदोलन ‘’ ( 2022 ), “ दौड़ते , भागते ,
दम तोड़ते मनुष्य की त्रासदी : रेस ‘’ ( 2022) , “गाँधी और संघ ‘’ ( 2022) , “ जीवन
समर की अंतर्कथा: समर ‘’ (2022) आदि
एकांकी - ‘पुनर्विवाह ’ ( 2022)
रचनात्मक उपलब्धियाँ-
‘ परिकथा ’, ‘आजकल’ , ‘पाखी’ ,‘ लमही ’ , ‘ कथादेश ‘ , ‘गगनांचल’,
‘ स्पर्श’ , ‘ विश्वगाथा ’ , ‘ सुसंभाव्य ’, ’सेतु( पीट्सवर्ग, अमेरिका) , ‘ साहित्यसुधा ‘, ‘ अनुसंधान’ ,
अनुशीलन’ , ‘ विपाशा’ , ‘हस्ताक्षर’ , सहित्यकुंज’ ‘ प्राची ’ ‘ साहित्यप्रभा’ , ‘सत्राची ’ , ‘दूसरा मत ’
, ‘ परिंदे’, ‘ विभोम स्वर ’ ‘ स्पर्शी ’ , ‘सुसंभाव्य’ , ‘ संवदिया’ ‘गुलमोहर ’ , ‘ई-कल्पना ’ , ‘ नव
किरण ’ , ‘ नव निकष ’ , ‘रचना उत्सव ’ आदि विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्र –पत्रिकाओं मे रचनाएँ प्रकाशित।
आकाशवाणी – बीकानेर , जोधपुर और गोरखपुर से कविता का प्रसारण
दूरदर्शन – मारवाड़ समाचार , जोधपुर से कविता का प्रसारण
सम्पादन सहयोग – “ मानव को शांति कहाँ ‘’ (मासिक पत्रिका) (2004- 2008 तक उप
संपादक )
आयोजन सचिव – “ महामारी ,आपदा और साहित्य ‘’ पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेविनार
( 13 जून 2020) ( आयोजक - भवंस मेह्ता महाविद्यालय, भरवारी, उत्तर प्रदेश )
व्याख्यान – 1. “ सिनेमा और साँझी विरासत ‘’ (14 जुलाई 2020 ) वाड़.मय पत्रिका, अलीगढ़ और विकास प्रकाशन ,कानपुर के संयुक्त तत्वाधान में ।
2. “ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और उनका काव्य ‘’( 30 सितम्बर , 2021) अखिल भारतीय सरदार पटेल सेवा संस्थान , प्रयागराज
सम्मान – साहित्योदय सम्मान (2020) , लक्ष्यभेद श्रम सेवी सम्मान(2020)
वर्तमान पता - आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
सहायक आचार्य (हिंदी)
भवंस मेहता महाविद्यालय , भरवारी
कौशाम्बी (उ. प्र. ) पिन – 212201 मोबाइल 7767041429 , 7972465770
ई –मेल chummanp2@gmail.com
कहानी पठनीय है। एक बार जरूर पढ़ें
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