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ऑस्कर अवार्ड विजेता फिल्म द एलिफेंट व्हिस्पर्स और मध्यवर्ग की उत्सव धर्मिता

 ऑस्कर अवार्ड 2023 के लिए भारतीय फिल्म द एलिफेंट व्हिस्परर्स को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म के लिए चुना जाना हम सब भारतीयों के लिए गर्व की बात है। यह फिल्म हाथियों और बाकी जानवरों के साथ इंसानों के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है। इस कैटेगरी में हॉलआउट, हाउ डू यू मेज़र ए ईयर?, द मार्था मिशेल इफेक्ट और स्ट्रेंजर एट द गेट जैसी बड़ी फिल्मों का नाम भी शामिल था। गुनीत मोंगा निर्मित कार्तिकी गोंसाल्विस की ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म का नॉमिनेशन मिला था। 'द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ एक तमिल भाषा की डॉक्युमेंट्री फिल्म है जो पिछले साल 8 दिसंबर को रिलीज हुई थी। यह उन लोगों की कहानी है, जो हाथियों के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी काम करते रहे हैं और जंगल की जरूरतों के बारे में बहुत जागरूक हैं। 

फिल्म की कहानी एक भारतीय परिवार के ईर्द-गिर्द घूमती है, जो तमिलनाडु के मुदुमलई टाइगर रिजर्व में दो अनाथ हाथी के बच्चों को गोद लेती है। फिल्म में भारतीय परिवार और अनाथ हाथियों के बीच रिश्तों की जबरदस्त बॉन्डिंग को दिखाया गया है। यह फिल्म हाथियों और बाकी जानवरों के साथ इंसानों के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है।

जब ये फिल्म रिलीज हुई तो इसको अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत तारीफें मिली।  बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा भी इस फिल्म की तारीफ किए बिना नहीं रह पाईं। उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरीज में फिल्म की तारीफ करते हुए लिखा था, ”दिल छू लेने वाली डॉक्यूमेंट्री में से एक, जिसे मैंने हाल ही में देखा। मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आई। इस शानदार कहानी को जीवंत करने के लिए कार्तिकी गोंसाल्विस और गुनीत मोंगा को बधाई !"

कोई भी भारतीय हो या सिने जगत से जुड़ा कोई शख्स हो , ज्यादातर लोगों सहित हम सबकी यही कमी है कि हम केवल खुशियां और जश्न मनाने तक ही सीमित रह जाते हैं। किसी पुरस्कार या किसी अवार्ड को पुरस्कार या अवार्ड के रूप में ही देखे जाने की परंपरा भारतीय समाज में बहुत गहराई में जाकर अपनी जड़ें जमा चुकी है। उसके आगे जाकर हम कुछ भी नहीं सोचते या हम कुछ सोचना ही नहीं चाहते । बहुत चिंतन योग्य और वैचारिक चीजों को भी हम एक उत्सव तक ही सीमित कर एक तरह से उसकी महत्ता को कम कर देते हैं।

क्या हमने कभी सोचा है कि भारत में जल जंगल जमीन की लड़ाई वर्षों पुरानी है। आज भी यह लड़ाई जारी है अनेक राज्यों के आदिवासी, जंगलों की रक्षा के लिए, नदियों की रक्षा के लिए, जमीनों की रक्षा के लिए और साथ साथ अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए नीत संघर्षशील हैं।उदाहरण के तौर पर देखें तो हमारे छत्तीसगढ़ में ही हसदेव अरण्य का आंदोलन लंबे समय से चल रहा है। हसदेव जंगल को बचाने के लिए वहां के लोग जी जान से जुटे हुए हैं। यही स्थिति कमोबेश हर राज्यों में है जहां लगातार जंगल नष्ट हो रहे हैं और जीव जंतु इधर-उधर भटकने को बाध्य हैं। भारत में हाथियों के इधर उधर भटकने की समस्या जंगल के नष्ट होने का ही दुष्परिणाम है । पर इस तरफ उत्सव धर्मी लोगों की नजर नहीं जाती। यह बहुत दुर्भाग्य जनक विषय है ।ऑस्कर अवार्ड प्राप्त यह फिल्म हाथियों से प्रेम और उनकी सुरक्षा के बहाने जल, जंगल, जमीन को बचाने की ही तो बात करती है। इन गहरे उद्देश्यों को लेकर निर्मित इस फिल्म को इसी वजह से ऑस्कर अवॉर्ड मिला है जिसके लिए हम आज उत्सव भी मना रहे हैं। इस फिल्म को देखने के उपरांत निश्चय ही हमारी संवेदना जंगली जीवों के प्रति जागृत होती है पर यह संवेदना महज उत्सव तक ही क्यों सीमित रह जाती है? यह एक सामयिक सवाल है जिसकी ओर हम जान बूझ कर नहीं जाते क्योंकि पूंजीवादी ताकतों के साथ कदमताल करना मध्यवर्ग की एक बड़ी मजबूरी है। समाज, राजनीति , कला और साहित्य हर क्षेत्र में आज का मध्य वर्ग केवल उत्सव धर्मी बनकर ही रह गया है जो उसकी संवेदना को संदिग्ध बनाता है। 

हमें केवल उत्सव धर्मी बनकर ही नहीं रह जाना चाहिए बल्कि इस फ़िल्म के पीछे जो गहरे उद्देश्य हैं , उन उद्देश्यों की ओर भी हमारी नजर जानी चाहिए ।  हम किस तरह जल, जंगल और जमीनों की सुरक्षा कर सकें या करने वालों का साथ दे सकें? किस तरह जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हो सकें?

इन सवालों की ओर भी आज लौटने की जरूरत है।

टिप्पणियाँ

  1. बढ़िया चिंतन। चीजों को इस तरह भी देखे जाने की आज जरूरत है।

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  2. ऐसी जागरूकता पूर्ण फिल्मों की जरूरत है लोगों के लिए। अच्छी टिप्पणी

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