ओड़िसा के पुरी जिलेे का रघुराजपुर गांव, हेरिटेज विलेज के नाम से ख्यात है।यह अपने सुन्दर पट्टचित्रों के कारण प्रसिद्ध है। पट्टचित्र की कलाकारी का इतिहास ५वीं सदी तक जाता है। इसके अलावा यह गोतिपुआ नृत्य के लिये भी प्रसिद्ध है जो ओड़िसी नृत्य का पूर्ववर्ती नृत्य है। ओड़िसी नृत्य के महान साधक एवं गुरू केलुचरण महापात्र की जन्मभूमि भी यही है। इनके अलावा यह गाँव तुषार चित्रकला, तालपत्रों पर चित्रकारी, पत्थर एवं काष्टकला आदि के लिये भी प्रसिद्ध है।
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राष्ट्रपति पुरस्कृत कलाकार लक्ष्मी प्रसाद सुबुद्धि से बातचीत)पुरी से लौटते समय उस गांव में जाकर यहां के ग्रामीणों से मिलने का हमें अवसर मिला। लक्ष्मी प्रसाद सुबुद्धि इस ग्राम के राष्ट्रपति पुरस्कृत कला साधक हैं जो पत्थर एवं काष्ठ कला,तुषार चित्रकला, पट्टचित्र, तालपत्रों पर चित्रकारी, गोबर के खिलौने आदि के लिये प्रसिद्ध हैं। उनसे भी आज मिलने का अवसर मिला। उनका स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं रहता ।जैसे ही हमारी इनोवा गांव के मुहाने पर पहुंचीं उनके सुपुत्र प्रशांत ने हमारी गाड़ी को रोककर अपने घर चलने का निवेदन किया। उनका घर गांव के एकदम आखिरी छोर पर पड़ता है और ज्यादातर पर्यटक वहां तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि बीच मैं जिनका घर पड़ता है वे पर्यटकों को रोक लेते हैं और अपने घर आने का आग्रह करते हैं।आग्रह इतना जबरदस्त होता है कि आप उनके घर गए बिना आगे नहीं बढ़ सकते। हमें भी बहुत से लोगों ने रोककर आग्रह किया पर चूंकि हमारे साथ प्रशांत बने हुए थे, इसलिए उनके पीछे पीछे हम हो लिए और उनके घर तक चले गए।
इस गांव तक पहुंचने के लिए कोलतार की सड़क तो बन गई है पर सड़कें थोड़ी सकरी हैं और यह पुरी भुवनेश्वर मुख्य मार्ग से करीब दो-तीन किलोमीटर अंदर है।प्रथम दृष्टया ही हमें आभास हो गया था कि यहां का हर घर कला जैसी संपदा से तो परिपूर्ण है पर लोगों के आर्थिक हालात अच्छे नहीं हैं। यहां पहुंचकर लगने लगा कि कला का सम्मान करते हुए सरकार को इन कलाकारों के लिए आर्थिक सुधार की दिशा में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।यह 120 घरों का छोटा सा गाँव है और प्रत्येक घर चित्रकारों की कुचिओं के रंगों से रौशन है।
वहाँ की चित्रकारी जो प्राकृतिक रंगों से की जाती है अतुलनीय है।प्रशांत के घर में प्रवेश करते ही हम एकदम दंग रह गए । अद्भुत ! वहां जाकर लगा कि इनके पास सम्मोहित कर देने वाली कला तो है पर ये कलाकार लक्ष्मी के वरदहस्त से एकदम वंचित हैं ...। पौराणिक कथाओं ,रामायण , महाभारत ,देवी देवताओं के जीवन प्रसंग से जुड़ी कहानियां इनकी चित्रकारी के मुख्य विषय हैं। ये रंगों के लिए फूल और समुद्र की सीपी का प्रयोग करते हैं ।इनकी प्रतिभा को पट्टचित्रों , ताड़ के पत्तों , नारियल ,सुपारी आदि पर पसरी हुई हमने देखी। देखते गए ....फिर भी मन है कि एकदम अतृप्त । इनकी कला को देखकर ही लगता है कि प्राचीन काल से उन्होंने अपनी कला को संजो कर जीवित रखा है और पीढ़ी दर पीढ़ी उसे पुष्पित और पल्लवित भी कर रहे हैं। लगभग सभी घरों में मिलती जुलती चित्रकारी आपको मिलेगी, सभी एकदम दर्शनीय। यहां जाकर आप हरेक के घर तो जा नहीं सकते पर सबको अपेक्षा रहती है कि पर्यटक मेरे घर आएं। 120 घरों वाले गांव में आप चाह कर भी सबके घरों में नहीं जा सकते इसलिए कुछ लोगों को शिकायत भी रहती है कि पर्यटक हमारे घर नहीं आ पाए। पर्यटकों को बुलाने के पीछे उनकी अपेक्षा रहती है कि उनकी कलाकृतियां कुछ बिक जाएं और उनके आर्थिक संसाधनों में कुछ वृद्धि हो। प्रशांत के पिता लक्ष्मी प्रसाद सुबुद्धि जो इसी कला के क्षेत्र में राष्ट्रपति पुरस्कृत हैं उनसे मैंने बैठकर बातचीत भी की, और उनकी कला को समझने का प्रयास भी किया। कुछ कलाकृतियां हमने वहां खरीदी भी। वहां से वापस आते समय कुछ घरों में भी हम गए और लोगों से बातचीत की।वापस होते समय रास्ते में भी हमने कुछ घरों से कलाकृतियां खरीद कर उन्हें खुश करने का प्रयास किया।लौटते समय मन होता रहा कि इस गांव में मैं बार-बार लौटकर फिर से आऊं।
पारंपरिक शिल्प को सहेजा जाना चाहिए यह शिल्पग्राम अपनी इस सामाजिक भूमिका को बखूबी निभा रहा है साथ ही युवाओं को रोजगार दे रहा है वह अत्यंत प्रशंसनीय है रामनाथ साहू छत्तीसगढ़ी साहित्यकार
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार संस्मरण। अनुग्रह के माध्यम से रघुराजपुर की यात्रा हमने भी कर ली।
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