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डॉ. किरण मिश्रा की कवितायेँ



'मैं ब्रह्मांड के उस कोने में रुकना चाहती हूँ जहां आत्माओं ने प्रेम गीत गाये हैं'


डॉक्टर किरण मिश्रा बहुत पहले से कवितायेँ लिख रही हैं . किरण की कविताओं में मनुष्य जीवन की वे सारी खूबसूरत और अनमोल कल्पनाएँ प्रस्फुटित होती हैं जिसकी प्राप्ति की आकांक्षा में मनुष्य, आजीवन अपने भीतर के मनुष्य को बचाए रखने की कोशिश में लीन रहता है . प्रेम इस ब्रम्हांड की सबसे खूबसूरत कल्पना है और अगर वह जीवन में मिल जाए तो यह कल्पना एक हकीकत में बदल कर जीवन को उस तरह गढ़ने लगती है कि उस गढ़न में सृष्टि एक नया विस्तार पाती है | सृष्टि का विस्तार एक अनंत प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया प्रेम के पहिये पर गतिमान होकर ब्रह्माण्ड को खूबसूरत बनाती है . प्रेम को ईश्वर का रूप भी कहा गया है और इस अर्थ में प्रेम, देह से निकली आत्मा भी है जो अमर है और ब्रम्हांड में विस्तार पाता रहता है . किरण की कविताओं में प्रेम और आत्मा के गहरे निहितार्थ हैं जिनका हमारे जीवन में होना ब्रम्हांड का बचे रहना है .एक स्त्री कवयित्री के नजरिये से प्रेम,आत्मा और सृष्टि को देखने की यह कवायद अन्ततः मनुष्य जीवन की खूबसूरती को इनके माध्यम से बचाए रखना ही है . किरण का अनुग्रह के इस मंच पर हार्दिक स्वागत है .


१.मेरा मन ब्रह्माण्ड है
हम एक पसली से बनी आत्माएं हैं
जिनका डेरा ब्रह्मांड में है
मैं ब्रह्मांड के उस कोने में रुकना चाहती हूँ
जहां आत्माओं ने प्रेम गीत गाये हैं
ये देह उन गीतों का अंकुर है !
तुम्हारी भुजाओं के कसाव से
मेरी देह से प्रस्फुटित होती सिसकियां
चक्रीय पुनर्जन्म की संभावनाओं का मार्ग है
जो नीचे बहुत नीचे पृथ्वी पर हस्तांतरित हो रही है।
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२.मैं उसके जोड़े में उसकी दो आत्मा हूँ
प्रकाश पुंज में समा उठता है प्रेम
तुम्हारी देह की सुगंध
मेरी सांसों में समाती है
धरती अपनी धुरी पर घूमती है
आकाशगंगा के पार
हमारे ब्रह्माण्ड के भेद धीरे धीरे खुलते हैं
दो तारे सदियों पुरानी भाषा मे फुसफुसाते हैं
फुसफुसाहट नाद में बदलती है
नाद और बिंदु का मिलन एक नया ब्रह्माण्ड रच रहा है।
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3. आत्माएं घर लौटती हैं
अश्वत्थ और शमी
लकड़ी के दो टुकड़े आत्माओं के घर हैं
जिनकी ऊष्मा से एक महाप्रकंपन के साथ
प्रेम के स्वर ब्रह्मांड में बिखर जाते हैं
रहस्य बुनती आत्माएं
एक सिरा पकड़ाती हैं अव्यक्त सत्ता के
और दूसरा सिरा लेकर निकल पड़ती हैं
सृष्टि बुनने को।
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४.स्त्रियां फूल सींचती हैं
अन्न पैदा करती स्त्री
गढ़ती है मन
जल खोजती स्त्री
देती है प्राण
देह की ऊष्मा देती स्त्री
रचती है सृष्टि
और ब्रह्मांड जगमगा उठता है।
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५.प्रेम का ब्रह्माण्ड ही हमारे गीत हैं
तुमने बाँसुरी में फूंक मारी है
ध्वनि से प्रज्ज्वलित हो गई अग्नि
सारे सत्य और सौंदर्य एक साथ खड़े हो,
कर रहे हैं स्नान अग्नि का
मैंने लगा लिए हैं हाथ अपनी आंखों में
हर अंधेरा हटाने को
सारा अंधेरा आकाश से परे दिखाई देता है
देह का ब्रह्माण्ड स्वर्ग नरक से दूर है
हमारे साथ सिर्फ हमारी आत्माएं हैं
जो सवार है
सत्व राजस तमस पर
ब्रह्माण्ड उर्वर हो रहा है आत्माओं के साथ।
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परिचय - डॉ किरण मिश्रा : समाजशास्त्री एवं शैक्षणिक सलाहकार, इग्नू ,पूर्व प्राचार्या डिग्री कॉलेज कानपुर
लेख -दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण ,लोकसत्य, लोकमत, जनमत की पुकार(पत्रिका) ग्राम सन्देश ,
स्वर सरिता पत्रिका (लोक कला सीरिज) जयपुर।
कविता- हरीगंधा,मधुमति, हिमप्रस्थ(साहित्य अकादमी),दोआबा,अहा!जिन्दगी, ,दुनिया इन दिनों,सेतु पत्रिका,अटूट बंधन, सौरभ दर्शन, विकल्प आदि में प्रकाशित।
आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनल में कविता पाठ
अनेक शोध पत्र -राष्ट्रीय /अंतरष्ट्रीय शोध -पत्रिकाओं में प्रकाशित
समाजशास्त्रीय पुस्तकें प्रकाशित।
पुरस्कार सम्मान: माटी साहित्य सम्मान(२०१३), सरस्वती सम्मान (२०१२) निराला श्री पुरस्कार (२०१५) गगन स्वर पुरस्कार (२०१५)
रामप्रसाद बिस्मिल सम्मान (२०१७)
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डॉ किरण मिश्रा
मेल- kiranpmg@gmail. com
मो० -- 8700696816

टिप्पणियाँ

  1. प्रेम के स्वर ब्रह्मांड में बिखर जाते हैं
    रहस्य बुनती आत्माएं
    एक सिरा पकड़ाती हैं अव्यक्त सत्ता के
    और दूसरा सिरा लेकर निकल पड़ती हैं
    सृष्टि बुनने को।
    ये कविताएं गहनता से परिपूर्ण,जीवन दर्शन से परिचय कराते हुए, कितना कुछ अनकहा भी कह जाती हैं। अद्भुद सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाएं।

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  2. किरण की कविताएं मन को झकझोर देनेवाली है।

    जवाब देंहटाएं

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