'लावारिश लाशें बहती हैं पुल के नीचे, पुल स्तब्ध
खड़ा रहता है'
युवा पीढ़ी के कवियों में रोहित ठाकुर बहुप्रकाशित और बहुपठित कवि हैं। उनके स्वभाव की विनम्रता उनकी कविताओं में भी जगह-जगह महसूस होती है । ऐसा भी
लगता है कि लोक जीवन से दूर होती संवेदना को एक बेचैनी के साथ उनकी कवितायेँ पुनरस्थापित
करने की जुगत में पाठकों से आत्मिक संवाद करती हैं ।उनकी कविताओं में जीवन की
विद्रूपताओं के प्रति प्रतिरोध का स्वर भाषायी आक्रोश के साथ भले ही नहीं गूँजता पर
उस प्रतिरोध के स्वर को सकारात्मक रूप में वे एक अलग तरह से चित्रित करने का
प्रयास करते हैं । इस प्रयास में उनके रोजमर्रा के जीवन में शामिल जो आसपड़ोस है,
जो प्रकृति है, और उनकी संगति में वहां से प्राप्त उनके जो तरल अनुभव हैं,उनकी जो
सूक्ष्म दृष्टि है ,वे सभी उनकी कविता में अपनी-अपनी भूमिका में एक कारीगर की तरह सक्रिय
नजर आते हैं।दुनियां को पुल की तरह कवि का देखना हमें विस्मित करता है । रोहित की कविता की पंक्ति 'लावारिश लाशें बहती हैं पुल के नीचे, पुल स्तब्ध खड़ा रहता है' को अगर संवेदना की आँख से देखने की कोशिश हो तो यह भीतर से कंपा देने वाली पंक्ति है, पर वह
दृष्टि अब लोगों की भीतरी दुनियां से ओझल हो रही है, इसलिए यह घटना उनके लिए
सामान्य हो सकती है ।लोगों में संवेदनिक दृष्टि की ओझलता से उपजी कवि की पीड़ा को
प्रतिरोध की तरह यह पंक्ति हमारे सामने रखती है। 'फुल' रोहित की कविता का प्रिय
बिम्ब है, वे जीवन के हर कोने को फुल की तरह सुन्दर देखना चाहते हैं।ऐसा देखना
बुरा भी नहीं है । जीवन के प्रति गहरी आस्था का भाव रखने वाला कवि ही यह कर सकता
है।अनुग्रह के लिए रोहित ने कवितायेँ भेजीं , हम उनका इस मंच पर हार्दिक स्वागत
करते हैं।
[ पुल ]
पुल से गुजरने वाला आदमी
नदी को निहारता है
पुल पर खड़ा आदमी
अपनी स्मृतियों में खो जाता है
पुल पर खड़ी औरतों की साड़ी
उड़ती है बादलों की तरह
पुल पर खड़े बच्चे नदी में छलांग लगाते हैं
तैरते हैं मछलियों की तरह
पुल प्रफुल्लित होता है यह सब देख कर
लावारिश लाशें बहती हैं पुल के नीचे
पुल स्तब्ध खड़ा रहता है |
[ कविता
]
कविता में भाषा को
लामबन्द कर
लड़ी जा सकती है लड़ाईयां
पहाड़ पर
मैदान में
दर्रा में
खेत में
चौराहे पर
पराजय के बारे में
न सोचते हुए
।
[ रेलगाड़ी ]
दूर प्रदेश से
घर लौटता आदमी
रेलगाड़ी में लिखता है कविता
घर से दूर जाता आदमी
रेलगाड़ी में पढ़ता है गद्य
घर जाता हुआ आदमी
कितना तरल होता है
घर से दूर जाता आदमी
हो जाता है विश्लेषणात्मक |
[ घर
जाते समय ]
कई लोग
चींटियों की तरह
प्रयत्नशील होते हैं
यत्न करते हैं
मधुमक्खियों की तरह
चमकते हैं
जुगनूओं की तरह
रेल बदलते हैं
बस पर सवार होते हैं
चलते हैं कुछ दूर पैदल
गिलहरियों की तरह दौड़ते हैं
घर पहुँचने के लिए
|
[ प्रकाश
वर्ष की दूरी तय कर आया हूँ
]
कितने प्रकाश वर्ष की दूरी
तय कर आया हूँ
अनगिनत तारों से मिला
पर बित्ते भर की छाँव नहीं थी कहीं
बैठ नहीं सका
आधे रास्ते एक चिड़िया
आकर बैठी काँधे पर
गाने लगी पेड़ों के गीत
मैंने याद किया अपने घर को
उस पेड़ को याद किया
घर छोड़ कर जाने के बाद
माँ को दिलासा देने के लिए
जो वहीं खड़ा रहा
|
[ विधान ]
हमारी हाथों में हथकड़ी डाल देते
थाने ले जाते
हमें पीटते और मार देते
हम इसे जुल्म नहीं कहते
विधान मान लेते अपने भाग्य का
पर दुःख तो इस बात का है
खेत में खड़ी फसल
किसी के काम नहीं आयी
|
[ इसी
नक्षत्र पर एक दिन ]
रोटी बेलता हुआ एक आदमी
भूख को एक आकार देता है
कविता में एक आदमी उन हाथों की
सुरक्षा की कामना करता है
एक बच्चा गीले आटे की लोई से
बनाता है खिलौने
वह रोटी का नहीं खिलौनों के
सूखने का इंतज़ार करता है
इसी नक्षत्र पर
एक ही जगह एक दिन
|
[ फूल ]
वह फूल जिसे कल गिरना हो
वह आज न गिरे
अगर गिरना ही हो तो
मेरी छाया गिर जाये
हत्यारे को कोई संशय नहीं रहेगा
उसका निशाना नहीं चूकेगा |
[ आकाश ]
आकाश को निहारते हुए चिड़िया हो जाना
धरती को निहारते हुए फूल
मनुष्य को निहारते हुए अनाज का दाना
भाषा को नहीं
दुःख को समझना
बहस में नहीं प्रेम में शामिल होना
और
हो सके तो
हो जाना कवि
|
[ एक
गिलहरी एकटक देखती है मुझे
]
घर की सीढ़ियों तक आती है धूप
कभी - कभी
दुःख आता है बार - बार
लौटती है धूप
दुःख नहीं लौटता
सहमति और असहमति के बीच जो कोलाहल है
उसके बीच एक सुंदर घटना घटती है
एक गिलहरी एकटक देखती है मुझे |
परिचय
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विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं बया, हंस, वागर्थ, पूर्वग्रह ,दोआबा , तद्भव, कथादेश, आजकल, मधुमती आदि में कविताएँ प्रकाशित
विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों - हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में कविताएँ
प्रकाशित ।
100 से
अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित ।
कविताओं का मराठी और पंजाबी भाषा में अनुवाद
प्रकाशित ।
संपर्क :
रोहित ठाकुर
C/O – श्री
अरुण कुमार
सौदागर पथ
काली मंदिर रोड के उत्तर
संजय गांधी नगर
, हनुमान नगर
, कंकड़बाग़
पटना, बिहार , पिन –
800026
बेहद शानदार कविताएं
जवाब देंहटाएंरोहित जी को हार्दिक शुभकामनाएं।
बेहतरीन कविताएँ । रोहित जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं । प्रस्तुतिकरण के लिए आपको बहुत -बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका।
हटाएंबढ़िया कविताएं
जवाब देंहटाएंसुधीर मिश्र
दुर्ग छत्तीसगढ़