चित्र रानी दरहा करमागढ़ ■अनघा जोगलेकर की कहानी 'ऐ जमूरे! ..हाँ उस्ताद' पढ़ते हुए ------------------------------------ हंस जून 2021 अंक में अनघा जोगलेकर की कहानी "ऐ जमूरे!... हाँ उस्ताद" पढ़कर उस पर कुछ लिखने के लिए कहानी के कथ्य ने एक तरह से मन को प्रोवोक किया। ऐसा तब होता है जब कोई कहानी अन्दर से हमें विचलित करने लगती है । दंगाई पृष्ठभूमि और उससे उपजे हालातों को बयाँ करती यह कहानी कभी दंगा का सामना न करने वाले लोगों को भी उन दृश्यों के इतना निकट ले जाती है जैसे वे स्वयं भी उन दृश्यों के हिस्से हों । दंगाई हालातों और कर्फ्यू के दरमियान किसी के दरवाजे पर मटके में पानी मांगने गयी कोई प्यासी अबोध बच्ची जब पुलिस की गोली का शिकार होकर सामने खून से लथपथ पड़ी हो और आप उसके चश्मदीद हों तो आपकी भीतरी दुनियां में किस तरह के मानवीय संवेग पैदा होंगे ? उस पर पुलिस पिस्तौल तानकर ये कहे कि इस लड़की को मना किया गया था .... नहीं मानी ! अन्दर जाइए नहीं तो आपको भी इस लडकी की तरह गोलियों से भून देंगे तब ? कहानी मन के भीतर एक कशमशाहट पैदा करती है कि झुग्गियों से न...