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वर्ल्ड थियेटर डे :आज भी है थियेटर का महत्व

जीवन में वैचारिक मूल्यों को जीवित रखने के लिए कला साहित्य के साथ साथ रंगमंच की एक बहुत बड़ी भूमिका है।रंगमंच के महत्त्व को बचाए रखना आज एक बड़ी जरूरत  है । यह एक ऎसी प्रदर्शन कारी कला है जो आदिकाल से लोगों को जगाने का काम करती रही है। कहते हैं आज के बाजारू समय में वैचारिक मूल्यों के लिए बाज़ार ने बहुत कम जगह छोड़ा है। सोशल मीडिया के समय में ज्यादातर युवा साहित्य कला रंगमंच जैसी जीवन मूल्यों को सृजित करने वाली कलाओं से दूर होकर रील बनाने में रात दिन व्यस्त हैं । चाहे फेसबुक हो चाहे इन्स्टाग्राम , वहां हम देखते हैं कि आज के युवा लड़के लड़की फिल्मी गानों में एक्टिंग करते हुए बहुत फूहड़ ढंग से शोर्ट वीडियो शेयर कर रहे हैं । बाज़ार ने आज उन्हें उस जगह खड़ा कर दिया है जैसे कि रील बनाकर ही जीवन गुज़ारा जा  सकता है । उनके दिमाग में यह चीज बाज़ार ने बिठा दिया है कि इससे पैसे कमाए जा सकते हैं । इसी धुन में जीवन के महत्वपूर्ण समय को जाया करते हुए उन्हें देखा जा सकता है । हजारों में किसी एक दो ने पैसे कमा लिए, इसका मतलब यह तो नहीं कि इस अंधी दौड़ में हर कोई उर्फी जावेद की राह पकड़ ले । दरअसल यह रास्ता जीवन में

भीष्म साहनी : जीवन की आस्था के अलहदा रचनाकार Bhishan Sahani Jivan ki aashtha ke alahada rachnakar

सन 1988 का वह दौर था जब मैं किरोड़ीमल शासकीय महाविद्यालय रायगढ़ में एम.एस-सी.प्रीवियस का छात्र था ।अपने गाँव जुर्डा, जो रायगढ़ शहर से लगभग आठ किलोमीटर दूर है, वहां से रोज कॉलेज अपनी साइकिल से आता-जाता था । गणित बिषय का छात्र होने के बावजूद मुझे साहित्य से गहरा लगाव था , स्कूली जीवन से ही पाठ्यपुस्तक की कहानियों के जरिये पढ़ने की अभिरूचि पैदा हो चुकी थी । कादम्बिनी, साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी पत्रिकाएँ कभी-कभार मेरी  पहुँच के भीतर हो जाया करती थीं , विद्यार्थी जीवन में अभावों के बावजूद कभी-कभार जेब खर्च के पैसों से इन्हें खरीदकर भी पढ़ लेता था ।उन दिनों रायगढ़ रेलवे स्टेशन इसलिए भी जाता था कि व्हीलर में रखी पत्र-पत्रिकाओं को देख सकूं । कई बार इच्छा होती थी कि कुछ पत्रिकाएँ , किताबें खरीदूं पर जेब में पैसे नहीं होते थे और मैं मायूस होकर लौट आता था । इसके बावजूद मेरे भीतर कहीं एक दबी हुई इच्छा रह गई थी कि अक्सर मैं वहां जाता रहा । इस जाने में एक उम्मीद थी जो वहां रखी किताबों में मुझे नजर आती थी । मेरे गाँव में उन्हीं दिनों पंचायत में एक ब्लेक एंड व्हाईट टीवी सरकार की ओर से उपलब्ध करवाई गयी थी ज

बल सर को याद करते हुए- लेखक, विचारक प्रो. हेमचन्द्र पांडेय

रायगढ़ अनेक प्रतिभाओं को जन्म देने वाली भूमि रही है। रायगढ़ से लगभग 15 किलोमीटर दूर झलमला नामक गांव में जन्मे प्रोफेसर डॉ दर्शन सिंह बल उन्हीं प्रतिभाओं में से एक रहे हैं जिन्होंने इस भूमि को थोड़ा और समृद्ध किया। तकनीकी क्षेत्र में अध्यापन की विशेषज्ञता के साथ साथ उनके भीतर की वैचारिकी भी उनकी एक खास विशेषता रही है।आज 17 मार्च को उनका जन्म दिन है।उनकी किताब मैं हूँ कौन की वैचारिकी के बहाने उनकी स्मृतियों पर प्रकाश डाल रहे हैं प्रोफेसर हेमचन्द्र पांडेय ! प्रोफेसर हेमचंद्र पांडेय  की पहचान लेखक होने के साथ साथ साहित्य के एक गम्भीर अध्येता के रूप में हमेशा से हम सबके बीच रही है।उनकी ओर से लिखे गए इस आलेख के माध्यम से डॉ.दर्शन सिंह बल के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझना हमारे लिए थोड़ा और आसान हुआ है। - रमेश शर्मा, संपादक: अनुग्रह. (डॉक्टर दर्शन सिंह बल , जन्म तिथि 17 मार्च)  बल सर को याद करते हुए इस लेख का शीर्षक जरूर " बल सर को याद करते हुए " दिया गया है लेकिन, सच तो यह है कि उन्हें भुलाना कभी संभव ही न हो सका।   कोविड की महामारी ने जब हम से उन्हें छीन लिया, तब ऐसा लगा जैसे निव

ऑस्कर अवार्ड विजेता फिल्म द एलिफेंट व्हिस्पर्स और मध्यवर्ग की उत्सव धर्मिता

 ऑस्कर अवार्ड 2023 के लिए भारतीय फिल्म द एलिफेंट व्हिस्परर्स को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म के लिए चुना जाना हम सब भारतीयों के लिए गर्व की बात है। यह फिल्म हाथियों और बाकी जानवरों के साथ इंसानों के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है। इस कैटेगरी में हॉलआउट, हाउ डू यू मेज़र ए ईयर?, द मार्था मिशेल इफेक्ट और स्ट्रेंजर एट द गेट जैसी बड़ी फिल्मों का नाम भी शामिल था। गुनीत मोंगा निर्मित कार्तिकी गोंसाल्विस की ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म का नॉमिनेशन मिला था। 'द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ एक तमिल भाषा की डॉक्युमेंट्री फिल्म है जो पिछले साल 8 दिसंबर को रिलीज हुई थी। यह उन लोगों की कहानी है, जो हाथियों के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी काम करते रहे हैं और जंगल की जरूरतों के बारे में बहुत जागरूक हैं।  फिल्म की कहानी एक भारतीय परिवार के ईर्द-गिर्द घूमती है, जो तमिलनाडु के मुदुमलई टाइगर रिजर्व में दो अनाथ हाथी के बच्चों को गोद लेती है। फिल्म में भारतीय परिवार और अनाथ हाथियों के बीच रिश्तों की जबरदस्त बॉन्डिंग को दिखाया गया है। यह फिल्म हाथियों और बाकी जानवरों के साथ इंसान

अनूप लाल मंडल के उपन्यासों में गांधी दर्शन

अर्य संदेश पत्रिका का मार्च 2023 अंक बिहार के प्रेमचंद के रूप में ख्यात उपन्यासकार स्व. अनूप लाल मंडल पर विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है।इस अंक में उनके लिखे दर्जनों उपन्यासों को केंद्र में रखकर उन पर बातचीत हुई है। इस अंक से यह आलेख यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है--        अनूप लाल मंडल के उपन्यासों में गांधी दर्शन अनूप लाल मंडल का औपन्यासिक रचना संसार बहुत व्यापक है । उनके उपन्यासों को पढ़कर लगता है कि उनकी रचना प्रक्रिया में लेखक को अपनी  भीतरी दुनिया में खुद से ही वैचारिक स्तरों पर सघन रूप में कितना तो जूझना पड़ा होगा । लेखक का यह आत्म संघर्ष उनके औपन्यासिक संसार को न केवल पुष्ट करता है बल्कि पाठकों के समक्ष उसे विश्वसनीय भी बनाता है । अंग्रेजी शासन द्वारा पोषित हो रहे तत्कालीन समाज में व्याप्त सामंतशाही व्यवस्था, जहां नारियों को भोग विलाश की वस्तु से अधिक कुछ भी नहीं समझा जाता था , जहाँ उनके लिए समाज में कोई स्पेस ही नहीं था , उस समाज से वैचारिक स्तर पर जूझना भी कम हिम्मत का काम नहीं । अनूप लाल मंडल के उपन्यास जिन संदर्भो को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं वह वैचारिक स्तर पर एक

हेमसुंदर गुप्ता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली : एक सुसंस्कृत छवि बिखेरता विद्यालय

बहुत दिन अभी नहीं हुए , सन 2022 का दिसम्बर महीना अभी अभी ही बीता है। वह दिन मेरी स्मृतियों में शेष है । रविवार का दिन था वह और स्व.हेमसुन्दर गुप्त शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महापल्ली, रायगढ़ के प्रांगण में लगभग 1000 लोग एकत्रित हुए थे। अवसर था इस विद्यालय में पूर्व और वर्तमान में अध्ययनरत विद्यार्थियों और वहां पूर्व और वर्तमान में पदस्थ शिक्षकों के आपसी समागम का। इस समागम में चार पीढ़ी के लोग शामिल हुए। निमंत्रण पाकर बहुत व्यस्त समय के बावजूद दूर दराज से जिस उत्साह के साथ सम्मेलन में भाग लेने यहां के भूतपूर्व छात्र , यहां की भूतपूर्व छात्राएं , और यहां के भूतपूर्व शिक्षको का आगमन हुआ , उनका यह आगमन विद्यालय के प्रति उनकी श्रद्धा और उनके प्रेम का प्रमाण है। अन्यत्र विवाही गईं यहां पढ़ने वाली पूर्व छात्राओं का उत्साह देखिए कि अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ वे भी यहां दौड़ी चली आईं। छत्तीसगढ़ के कोने कोने जशपुर , जांजगीर , कोरबा से लोग दौड़े चले आए । अपने पुराने सहपाठियों और भूतपूर्व शिक्षकों से मिलने की तीव्र इच्छा ने उनके भीतर की ऊर्जा को उड़ान देकर इस विद्यालय के प्रांगण में उन्हें

अच्युतानंद मिश्र युवा कवि आलोचक का वक्तब्य: छत्तीसगढ़ साहित्य एकेडमी का आयोजन

प्र भात त्रिपाठी का उपन्यास "किस्सा बेसिर पैर" वस्तुकृत हो रहे मनुष्य के भीतर गैर वस्तुकृत चेतना और प्रेम को स्थापित करता है- युवा कवि आलोचक अच्युतानंद मिश्र     अच्युतानंद मिश्र  प्रभात त्रिपाठी की आलोचना और उनके रचनात्मक लेखन को केंद्र में रखकर मेरे जेहन में एक प्रश्न है और जहां से मैं अपनी बात शुरू करने जा रहा हूँ ।  हम सरलीकरण के लिए दो कोटि लेखकों की बनाएं ... एक वो जो किसी ख़ास विधा में पूरे जीवन लिखते हैं और एक उस तरह के लेखक जो विधाओं के बीच आवाजाही करते हैं ।  वे लेखक जो विधाओं के बीच आवाजाही करते हैं मसलन प्रभात त्रिपाठी जो आलोचना भी लिखते हैं , कविता भी लिखते हैं, कहानी और उपन्यास भी लिखते हैं । यह विधाओं के अतिक्रमण का जो मामला है उसमें इस बीच क्या लेखक की कोई केन्द्रीय प्रवृत्ति मौजूद रहती है जो उसकी आलोचना में भी हो, उसके रचनात्मक लेखन  में भी हो ? क्या इस तरह की किसी केन्द्रीयता की खोज कोई अर्थ रखती है? या वहां से उस लेखक को जानने समझने में कोई मदद मिल सकती है ?  फर्ज कीजिए कि इस सवाल को मैं इसलिए भी उठा रहा हूँ कि हमारे सामने इस तरह के कई उदाहरण हैं कि प्रसाद