जिन्दगी की ठोस सच्चाइयों का जीवंत दस्तावेज◆ कहानियों को पढ़ते हुए पाठकों को अपनी बाहरी और भीतरी दुनियां से साक्षात्कार होने जैसा कुछ न कुछ अनुभव होना चाहिए अर्थात कहानी को पढने के पूर्व और पढने के उपरान्त मानसिक अनुभवों का जो अंतर है, उस अन्तर का इन दोनों ही दुनियाओं से ठहरकर सीधा संवाद होना चाहिए |अनुपमा तिवाड़ी की कहानियों को पढ़ने के उपरान्त उपरोक्त वर्णित इस शर्त की कसौटी पर उन्हें कसे जाने की अगर बात हो, तो मेरा खुद का अपना अनुभव यह कहता है कि उनके संग्रह 'भूरी आँखें घुंघराले बाल' की ज्यादातर कहानियाँ हमारी भीतरी और बाहरी दुनियाओं से भरपूर संवाद करती हैं | इन कहानियों को पढ़कर हम यूं ही आगे नहीं बढ़ जाते बल्कि एक लम्बे समय तक इन कहानियों के भीतर रंगे-घुले जिन्दगी के असल पात्रों के दुःख दर्द और उनके संघर्ष को हम करीब से महसूस करते हैं | ये कहानियाँ कहीं से भी कहानी न लगते हुए जिन्दगी की ठोस सच्चाइयों का एक जीवंत दस्तावेज लगती हैं जिसे लेखिका ने सामाजिक जिम्मेदारियों से भरे अपने यायावरी जीवन के बीच से खोज निकाला है | बहुत करीब से देखी परखी गयीं सामाजिक घटनाओं को लेक...