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अमिता प्रकाश की कहानी "रंगों की तलाश"

"इन रंगो में जीवन की परछाई नज़र आती है" अमिता प्रकाश पहले से कहानियाँ लिख रही हैं . उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन को उन्होंने करीब से देखा है . "पहाड़ के बादल" और "रंगों की तलाश" उनके  कहानी संग्रह हैं  . अमिता की कहानियां स्त्री जीवन की भीतरी दुनियां से गुजरतीं हुईं रूक-रूक कर पाठकों से संवाद करती हैं . इस रूकने में कई बार एक चुप्पी सी छाने लगती है जैसे कोई स्त्री रूक-रूक कर अपनी व्यथा व्यक्त कर रही हो . रंगों की तलाश कहानी में भी स्त्री जीवन के वे सारे अनुभव हैं जो गाहे-बगाहे पितृसत्तात्मक समाज में उसे तोहफे में मिलते रहे हैं . एक स्त्री अपने जीवन में उन रंगों की तलाश में रहती है जिनमें प्रेम, विश्वास और जीवन मूल्य घुले मिले हों . वह अपनी जीवन यात्रा में अपने सहयात्री से भी इन रंगों की उम्मीद करती है . जब उसके जीवन में ये उम्मीदें टूटती हैं तो वह किन मनः स्थितियों से गुजरती होगी, उसके विविध रंग कथानक के केनवास पर इस  कहानी में उभरते हैं . अमिता जी का अनुग्रह के इस मंच पर स्वागत है  .  रंगों की तलाश                शाम गहरा रही थी। क्षितिज पर घिर आए ’ बादलों क

अपरूपा पंडित की कविताएँ

  "क्योंकि दुःख घुल जाता है उसके जल में"  अपरूपा पंडित की कवितायेँ पहली बार मैंने परिकथा में पढ़ी थीं | वे वर्तमान में लामडिंग असम में रहती हैं और वहां के एक विश्वविद्यालय में हिन्दी बिषय में पीएचडी स्कॉलर हैं | अपरूपा बाहरी दुनियां को अपने भीतर जिस संवेदना के साथ गहराई में जाकर महसूस करती हैं उस महसूसने को उनकी कवितायेँ भलीभांति रिप्रेजेन्ट करती हैं | जीवन यात्रा और उससे उपजे अनुभव और स्मृतियों को अपने अतीत और वर्तमान की आँखों से देखने परखने का एक अलहदा नजरिया अपरूपा के पास है , वह नजरिया उनकी कविताओं में घुला मिला है | प्रकृति और मनुष्य के अंतर्संबंधों से उपजी संवेदनाएं, जीवन के सुख दुःख को सहजता से भांप लेती हैं , तभी तो वे अपनी कविता नदी उदास नहीं होती में कहती हैं ----  "क्योंकि दुःख घुल जाता है उसके जल में" ! अपरूपा का अनुग्रह के इस मंच पर हार्दिक स्वागत है !   1.नदी उदास नहीं होती -------------------------------- नदी बहती रहती पुल के नीचे अपनी धुन में दायें - बाएं किनारों से गले मिलती ,बहती रहती उसे कहाँ पता होगा कि पुल पर खड़ा आदमी कब से देख रहा उसे अपल

प्रीति प्रकाश की कहानी : राम को जन्म भूमि मिलनी चाहिए

प्रीति प्रकाश की कहानी 'राम को जन्म भूमि मिलनी चाहिए' को वर्ष 2019-20 का राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान मिला है, इसलिए जाहिर सी बात है कि इस कहानी को पाठक पढ़ना भी चाहते हैं | हमने उनकी लिखित अनुमति से इस कहानी को यहाँ रखा है | कहानी पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि यह कहानी एक संवेदन हीन होते समाज के चरित्र के दोहरेपन, ढोंग और उसके एकतरफा नजरिये को  किस तरह परत दर परत उघाड़ती चली जाती है | समाज की आस्था वायवीय है, वह सच के राम जिसके दर्शन किसी भी बच्चे में हो सकते हैं  , जो साक्षात उनकी आँखों के सामने  दीन हीन अवस्था में पल रहा होता है , उसके प्रति समाज की न कोई आस्था है न कोई जिम्मेदारी है | "समाज की आस्था एकतरफा है और निरा वायवीय भी " यह कहानी इस तथ्य को जबरदस्त तरीके से सामने रखती है | आस्था में एक समग्रता होनी चाहिए कि हम सच के मूर्त राम जो हर बच्चे में मौजूद हैं , और अमूर्त राम जो हमारे ह्रदय में हैं , दोनों के प्रति एक ही नजरिया रखें  | दोनों ही राम को इस धरती पर उनकी जन्म भूमि  मिलनी चाहिए, पर समाज वायवीयता के पीछे जिस तरह भाग रहा है, उस भागम भाग से उपजी संवेदनहीनता को