सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

यात्रा संस्मरण लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तीरथगढ़ बस्तर की यात्रा Tirathgarh Bastar ki yatra

जब हमारे मित्रों की टोली बस्तर भ्रमण पर थी तो इस बस्तर भ्रमण के दौरान एक दिन हम सब तीरथगढ़ जलप्रपात भी जा पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद पर्यटन का जो आनंद होता है जीवन में, उस आनंद की अनुभूति को वहां से वापस लौट आने के बाद भी मैं बारंबार  महसूस करता रहता हूं। तीरथगढ़ जलप्रपात को लेकर जो बातें हमें जानने समझने को मिलती हैं उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ के बस्‍तर जिले में कांगेर नदी पर स्थित इस तीरथगढ़ वाटरफॉल की ऊंचाई 299 फीट है।         जब तीरथगढ़ जलप्रपात पर पहुंची मस्तानों की टोली यह जलप्रपात कांगेर घाटी नेशनल पार्क का हिस्सा है । यह जलप्रपात खूबसूरत जंगलों और प्रचुर वनस्‍पति और वन्‍यजीवों से चारों तरफ घिरा हुआ है। ये जगह बहुत खूबसूरत होने की वजह से पर्यटक यहां फोटोग्राफी का भी भरपूर आनंद हमारी तरह ले सकते हैं। यहां की हवा शुद्ध है और चारों तरफ के वातावरण में एक अलग किस्म का नशा छाया रहता है जो मन को ताजगी और खुशी से भर देता है। तीरथगढ़ जलप्रपात का खूबसूरत नजारा  प्राकृतिक छटाओं से घिरे होने के कारण पर्यटक यहां खूब आनंद लेते हैं।ऊंचे पहाड़ों से पानी के  झर झर कर गिरने की वजह से यहां का पानी दूधिया

गंगाधर मेहेर : ओड़िया के लीजेंड कवि gangadhar meher : odiya ke legend kavi

हम हिन्दी में पढ़ने लिखने वाले ज्यादातर लोग हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के कवियों, रचनाकारों को बहुत कम जानते हैं या यह कहूँ कि बिलकुल नहीं जानते तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।  इसका एहसास मुझे तब हुआ जब ओड़िसा राज्य के संबलपुर शहर में स्थित गंगाधर मेहेर विश्वविद्यालय में मुझे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर वक्ता वहां जाकर बोलने का अवसर मिला ।  2 और 3  मार्च 2019 को आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शामिल होने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जिस शख्श के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नामकरण हुआ है वे ओड़िसा राज्य के ओड़िया भाषा के एक बहुत बड़े कवि हुए हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से  ओड़िसा राज्य को देश के नक़्शे में थोड़ा और उभारा है। वहां जाते ही इस कवि को जानने समझने की आतुरता मेरे भीतर बहुत सघन होने लगी।वहां जाकर यूनिवर्सिटी के अध्यापकों से , वहां के विद्यार्थियों से गंगाधर मेहेर जैसे बड़े कवि की कविताओं और उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी जुटाना मेरे लिए बहुत जिज्ञासा और दिलचस्पी का बिषय रहा है। आज ओड़िया भाषा के इस लीजेंड कवि पर अपनी बात रखते हुए मुझे जो खुशी हो रही है वह मेर

चम्पारण्य (छत्तीसगढ़) की यात्रा : TRAVEL TO CHAMPARANYA C.G.

छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि    चम्पारण्य   champaranya  छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्द धार्मिक पर्यटक स्थल है।   मेरी स्मृति में यह बात आ रही है कि सन 1991-92 में, मैं वहां तब गया था जब धमतरी के निकट स्थित गाँव पलारी के खुमान प्रसाद आर्य गुरुजी मुझे जोर देकर वहां अपने साथ ले गए थे। उस समय रामायण के प्रसिद्द कथा   वाचक मोरारी बापू चंपारण आये हुए थे और उनकी कथा चल रही थी।उन दिनों मेरी उम्र 23 वर्ष की रही होगी। मुम्बई के बाबू भाई कणकिया ने विशाल क्षेत्र में फैले कथा स्थल में क्लोज सर्किट टीवी की व्यवस्था कर रखी थी। चंपारण की उस भूमि पर आज से तैतीस चौतीस साल पहले के सारे दृश्य अभी भी मेरी स्मृति में जीवंत रूप में विद्यमान हैं । गरमी के दिन थे पर उन दिनों भी वहां चारों तरफ घना जंगल जैसा लुक आता था । हरे भरे विशाल वृक्षों से सुसज्जित चंपारण के मंदिरों वाला कैंपस मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था। हाल ही में फरवरी 2021 में वहां मुझे पुनः जाने का अवसर हाथ लगा उस यात्रा को लेकर कुछ संस्मरण सुनने-सुनाने की इच्छा में, आप सबसे साझा करने की मेरी यह एक कोशिश है। चम्पारण्य का यह प्रसिद्द स्थल मुख्यतः

"रघुराजपुर" ओड़िसा के शिल्प ग्राम की यात्रा odisha ke shilp gram raghurajpur ki yatra

ओड़िसा के पुरी जिलेे का रघुराजपुर गांव, हेरिटेज विलेज के नाम से ख्यात है।यह अपने सुन्दर पट्टचित्रों के कारण प्रसिद्ध है। पट्टचित्र की कलाकारी का इतिहास ५वीं सदी तक जाता है। इसके अलावा यह गोतिपुआ नृत्य के लिये भी प्रसिद्ध है जो ओड़िसी नृत्य का पूर्ववर्ती नृत्य है। ओड़िसी नृत्य के महान साधक एवं गुरू केलुचरण महापात्र की जन्मभूमि भी यही है। इनके अलावा यह गाँव तुषार चित्रकला, तालपत्रों पर चित्रकारी, पत्थर एवं काष्टकला आदि के लिये भी प्रसिद्ध है। ( राष्ट्रपति पुरस्कृत कलाकार लक्ष्मी प्रसाद सुबुद्धि से बातचीत) पुरी से लौटते समय उस गांव में जाकर यहां के ग्रामीणों से मिलने का हमें अवसर मिला। लक्ष्मी प्रसाद सुबुद्धि इस ग्राम के राष्ट्रपति पुरस्कृत कला साधक हैं जो पत्थर एवं काष्ठ कला,तुषार चित्रकला, पट्टचित्र, तालपत्रों पर चित्रकारी,  गोबर के खिलौने आदि के लिये प्रसिद्ध हैं। उनसे भी आज मिलने का अवसर मिला। उनका स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं रहता ।जैसे ही हमारी इनोवा गांव के मुहाने पर पहुंचीं उनके सुपुत्र प्रशांत ने हमारी गाड़ी को रोककर अपने घर चलने का निवेदन किया। उनका घर गांव के एकदम आखिरी छोर पर पड

चंद्रहासिनी मंदिर चंद्रपुर और महानदी में बोटिंग

महानदी के तट पर बसा चंद्रपुर चंद्रहासिनी मंदिर महानदी और नाथल दाई मंदिर के कारण बहुत प्रसिद्ध है। इन मंदिरों के कारण इस जगह का बहुत महत्व है और लोग आस्था के नाम पर भी यहां दूर-दूर से आते हैं। उड़ीसा के पर्यटकों को भी आए दिन यहां देखा जाता रहा है। चंद्रपुर हालांकि जांजगीर-चांपा जिले में आता है पर यहाँ की दूरी रायगढ़ से मात्र 29 किलोमीटर होने के कारण आए दिन रायगढ़ के पर्यटक यहां भी पहुंचते रहते हैं।  चंद्रपुर में भी मोटे तौर पर पुल के इस पार और पुल के उस पार दो हिस्से हैं जहां पर्यटक दोनों तरफ आना-जाना करते हैं।  पुल के इस पार चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है जहां लोग पूजा पाठ करने जाते हैं। चंद्रहासिनी देवी का मंदिर भी बहुत सुंदर है ऊपर में मंदिर के आसपास थोड़ी सी पार्क जैसी जगह भी है जहां लोग बैठकर सुस्ता भी लेते हैं । यह मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर है और बगल से महानदी भी बहती है इसलिए वहां से चारों तरफ का दृश्य बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है। चंद्रहासिनी देवी मंदिर से पूजा पाठ करके जब आप उतरते हैं और पुल के उस पार जाते हैं तो नदी के उस छोर पर नाथल दाई का मंदिर है और बहुत से पर्यटक वहां पिकनिक स्पॉट के

कोइलिघुगर वॉटरफॉल तक की यात्रा रायगढ़ से

    अपने दूर पास की भौगौलिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों को जानने समझने के लिए पर्यटन एक आसान रास्ता है । पर्यटन से दैनिक जीवन की एकरसता से जन्मी ऊब भी कुछ समय के लिए मिटने लगती है और हम कुछ हद तक तरोताजा भी महसूस करते हैं । यह ताजगी हमें भीतर से स्वस्थ भी करती है और हम तनाव से दूर होते हैं । रायगढ़ वासियों को पर्यटन करना हो वह भी रायगढ़ के आसपास तो झट से एक नाम याद आता है कोयलीघोघर! कोयलीघोघर ओड़िसा के झारसुगड़ा जिले का एक प्रसिद्द पिकनिक स्पॉट है जहां रायगढ़ से एक घंटे में सड़क मार्ग की यात्रा कर बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है । शोर्ट कट रास्ता अपनाते हुए रायगढ़ से लोइंग, बनोरा, बेलेरिया होते ओड़िसा के बासनपाली गाँव में आप प्रवेश करते हैं फिर वहां से निकल कर भीखमपाली के पूर्व पड़ने वाले एक चौक पर जाकर रायगढ़ झारसुगड़ा मुख्य सड़क को पकड लेते हैं। इस मुख्य सड़क पर चलते हुए भीखम पाली के बाद पचगांव नामक जगह आती है जहाँ खाने पीने की चीजें मिल जाती हैं।  यहाँ के लोकल बने पेड़े बहुत प्रसिद्द हैं जिसका स्वाद कुछ देर रूककर लिया जा सकता है । पचगांव से चलकर आधे घंटे बाद कुरेमाल का ढाबा पड़ता है , वहां र