पूजा कुमारी नई पीढ़ी की प्रतिभाशाली कवयित्रियों में से एक हैं । उनकी कविताओं में स्त्री चेतना की अनुभूतियां इस तरह घुलमिलकर आती हैं कि मनुष्य जीवन के अनुभवों से उनकी तारतम्यता का एहसास सहज ही होने लगता है। एक स्त्री के भीतर उठती इन अनुभूतियों में विवेक और भावनाओं का सम्यक संतुलन पूजा की कविताओं को पुष्ट करता है। अपनी भावनाओं और विचारों के मिले जुले आवेगों के साथ एक लड़की को जिस तरह जीवन को देखना चाहिए , वह सम्यक दृष्टि पूजा के भीतर नैसर्गिक रूप में विद्यमान है और वही दृष्टि उनकी कविताओं के माध्यम से हम तक पहुंचती भी है । एक लड़की का संघर्ष इन कविताओं में गुंजित होता हुआ भी हमें सुनाई देता है। कविताएं जीवन और समाज की बेहतरी को ध्यान में रखकर ही रची जाती हैं , उस बेहतरी में एक स्त्री की भूमिका का स्थापन किस तरह सुस्पष्ट हो, पूजा की ज्यादातर कविताएं इसी भूमिका के स्थापन की ओर आगे बढ़ती हैं। उनकी कविताओं में जीवन मूल्यों के प्रति आस्था बहुत सहज तरीके से शामिल होती चली जाती है, जो एक तरह से किसी कवयित्री के लिए कविता धर्म का निर्वहन भी है।पूजा की कविताओं में सहजता भले दिखाई पड़े, पर वि