पारमिता षडंगी कहानी "पत्थर में बदलने वाली"- पारमिता षड़ंगी ‘ मौसी , सिर्फ तीन फूल चाहिए , पूरा एपार्टमेंट घूम आई यह फूल कहीं नहीं मिला।आज व्रत है।आप तो जानते हो इस व्रत में कनेर का फूल लगता है।एक लक्ष्मी माता को चढ़ाऊंगी , एक पूजा के थाल में रखूंगी , और एक फूल के अंदर चावल दूर्वा के साथ रखकर देवी को समर्पित करूंगी।तोड़ लूं क्या ?’ मेरी समस्या वे समझें और विश्वास करें , यह सोचकर मैंने इतनी सारी बातें एक सांस में कह दी। वे स्थिर होकर सुनती रहीं और एकाएक बोलीं , ‘ नहीं , नहीं दे सकती। ’ ‘ नहीं ’, इस एक शब्द ने मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाया , पूजा के लिए तीन फूल नहीं दिया।मैंने उनकी ओर पैनी निगाह से देखा और वापस आ गई।जब मैं वापस आ रही थी , तो वे घर के अंदर खिड़की के उस तरफ किसी से कह रही थीं , ‘ उसने फूल मांगे , मैंने नहीं दिए। ’ मैंने सुन लिया। उन्होंने एक सफेद साड़ी पहनी थी।कान , बाहें और माथे पर चंदन का लेप , गर्दन पर तुलसी की माला और बिना ब्लाउज की साड़ी पहनी हुई थीं , जिसमें से उनके शरीर की नसें बाहर झांक कर उम्र को साफ-साफ बता रही थीं।सूर्य को जल चढ़ाने के लिए मुंह फेर