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हमारे बारे में -

अच्छा साहित्य एवं कल्चरल विषयों पर लेखन को लेकर यह ब्लॉग हमने तैयार किया है। अनुग्रह ब्लॉग पर आपका स्वागत है। समकालीन कहानी, कविता , आलोचना  एवं वैचारिक बिषयों पर चर्चा को लेकर हम यहाँ उपस्थित हुए हैं । देश दुनिया में रचे जा रहे नवीनतम साहित्य पर हमारी नज़र निरंतर बनी हुई है जिससे हम हमारे पाठकों को निरंतर अवगत कराते रहेंगे । नयी कहानियों , नयी कविताओं सहित सम सामयिक वैचारिक संदर्भों को लेकर जो बिषय जरूरी होंगे उन पर भी आलोचनात्मक लेख यहाँ पढने को मिलेंगे। नयी किताबों की समीक्षा को लेकर भी हम आपके लिए प्रतिबद्ध हैं । आशा है हमारे पाठक यहाँ निराश नहीं होंगे।

अनुग्रह में प्रकाशन हेतु नई , अप्रकाशित, मौलिक रचनाएं आमंत्रित हैं । वैचारिक लेख भी यहां प्रकाशित किए जाएंगे पर शर्त यह है कि वे कहीं अन्यत्र प्रकाशित ना हुए हों।

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We prepared this blog for litrary and cultural writting. Welcome to Anugraha Blog. We have come here to discuss contemporary story, poetry, criticism and ideological topics. Our eyes are constantly on the latest literature being created in the country and the world, due to which we will continue to inform our readers. You will get to read critical articles on new stories, new poems including contemporary ideological contexts which will be necessary. We are also committed to you for the review of new books. Hope our readers will not be disappointed here.

New, unpublished, original works are invited for publication in Anugraha. Ideological articles will also be published here but the condition is that they have not been published anywhere else.



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इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ओमा द अक ने

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।              कहानी '

डॉक्टर उमा अग्रवाल और डॉक्टर कीर्ति नंदा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रायगढ़ शहर के दो होनहार युवा महिला चिकित्सकों से जुड़ी बातें

आज 8 मार्च है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस । आज के दिन उन महिलाओं की चर्चा होती है जो अमूमन चर्चा से बाहर होती हैं और चर्चा से बाहर होने के बावजूद अपने कार्यों को बहुत गम्भीरता और कमिटमेंट के साथ नित्य करती रहती हैं। डॉ कीर्ति नंदा एवं डॉ उमा अग्रवाल  वर्तमान में हम देखें तो चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला चिकित्सकों की संख्या में  पहले से बहुत बढ़ोतरी हुई है ।इस पेशे पर ध्यान केंद्रित करें तो महसूस होता है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी महिला डॉक्टरों के साथ बहुत समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। उन पर काम का बोझ अत्यधिक होता है और साथ ही साथ अपने घर परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियों को भी उन्हें देखना संभालना होता है। महिला चिकित्सक यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ है और किसी क्षेत्र विशेष में  विशेषज्ञ सर्जन है तो  ऑपरेशन थिएटर में उसे नित्य मानसिक और शारीरिक रूप से संघर्ष करना होता है। किसी भी डॉक्टर के लिए पेशेंट का ऑपरेशन करना बहुत चुनौती भरा काम होता है । कहीं कोई चूक ना हो जाए इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । इस चूक में  पेशेंट के जीवन और मृत्यु का मसला जुड़ा होता है।ऑपरेशन थियेटर में घण्टों  लगाता

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवारों

परिधि को रज़ा फाउंडेशन ने श्रीकांत वर्मा पर एकाग्र सत्र में बोलने हेतु आमंत्रित किया "युवा 2024" के तहत इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में आज है उनका वक्तब्य

परिधि को रज़ा फाउंडेशन ने श्रीकांत वर्मा पर एकाग्र सत्र में बोलने हेतु आमंत्रित किया "युवा 2024" के तहत इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में आज है उनका वक्तब्य रज़ा फाउंडेशन समय समय पर साहित्य एवं कला पर बड़े आयोजन सम्पन्न करता आया है। 27 एवं 28 मार्च को पुरानी पीढ़ी के चुने हुए 9 कवियों धर्मवीर भारती,अजितकुमार, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,विजयदेवनारायण शाही,श्रीकांत वर्मा,कमलेश,रघुवीर सहाय,धूमिल एवं राजकमल चौधरी पर एकाग्र आयोजन रखा गया है।दो दिनों तक चलने वाले 9 सत्रों के इस आयोजन में पांचवा सत्र श्रीकांत वर्मा  पर एकाग्र है जिसमें परिधि शर्मा को बोलने हेतु युवा 2024 के तहत आमंत्रित किया गया है जिसमें वे आज शाम अपना वक्तव्य देंगी। इस आयोजन के सूत्रधार मशहूर कवि आलोचक अशोक वाजपेयी जी हैं जिन्होंने आयोजन के शुरुआत में युवाओं को संबोधित किया।  युवाओं को संबोधित करते हुए अशोक वाजपेयी  कौन हैं सैयद हैदर रज़ा सैयद हैदर रज़ा का जन्म 22 फ़रवरी 1922 को  मध्य प्रदेश के मंडला में हुआ था और उनकी मृत्यु 23 जुलाई 2016 को हुई थी। वे एक प्रतिष्ठित चित्रकार थे। उनके प्रमुख चित्र अधिकतर तेल या एक्रेलि

अख़्तर आज़ाद की कहानी लकड़बग्घा और तरुण भटनागर की कहानी ज़ख्मेकुहन पर टिप्पणियाँ

जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती होंगी कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। (हंस जुलाई 2023 अंक में अख्तर आजाद की कहानी लकड़बग्घा पढ़ने के बाद एक टिप्पणी) -------------------------------------- हंस जुलाई 2023 अंक में कहानी लकड़बग्घा पढ़कर एक बेचैनी सी महसूस होने लगी। लॉकडाउन में मजदूरों के हजारों किलोमीटर की त्रासदपूर्ण यात्रा की कहानियां फिर से तरोताजा हो गईं। दास्तान ए कमेटी के सामने जितने भी दर्द भरी कहानियां हैं, पीड़ित लोगों द्वारा सुनाई जा रही हैं। उन्हीं दर्द भरी कहानियों में से एक कहानी यहां दृश्यमान होती है। मजदूर,उसकी गर्भवती पत्नी,पाँच साल और दो साल के दो बच्चे और उन सबकी एक हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा। कहानी की बुनावट इन्हीं पात्रों के इर्दगिर्द है। शुरुआत की उनकी यात्रा तो कुछ ठीक-ठाक चलती है। दोनों पति पत्नी एक एक बच्चे को अपनी पीठ पर लादे चल पड़ते हैं पर धीरे-धीरे परिस्थितियां इतनी भयावह होती जाती हैं कि गर्भवती पत्नी के लिए बच्चे का बोझ उठाकर आगे चलना बहुत कठिन हो जाता है। मजदूर अगर बड़े बच्चे का बोझ उठा भी ले तो उसकी पत्नी छोटे बच्चे का बोझ उठाकर चलने में पूरी तरह असमर्थ हो च

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सोचना

समकालीन कहानी : अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग ,सर्वेश सिंह की कहानी रौशनियों के प्रेत आदित्य अभिनव की कहानी "छिमा माई छिमा"

■ अनिल प्रभा कुमार की दो कहानियाँ- परदेस के पड़ोसी, इंद्रधनुष का गुम रंग अनिलप्रभा कुमार की दो कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला।परदेश के पड़ोसी (विभोम स्वर नवम्बर दिसम्बर 2020) और इन्द्र धनुष का गुम रंग ( हंस फरवरी 2021)।।दोनों ही कहानियाँ विदेशी पृष्ठ भूमि पर लिखी गयी कहानियाँ हैं पर दोनों में समानता यह है कि ये मानवीय संवेदनाओं के महीन रेशों से बुनी गयी ऎसी कहानियाँ हैं जिसे पढ़ते हुए भीतर से मन भींगने लगता है । हमारे मन में बहुत से पूर्वाग्रह इस तरह बसा दिए गए होते हैं कि हम कई बार मनुष्य के  रंग, जाति या धर्म को लेकर ऎसी धारणा बना लेते हैं जो मानवीय रिश्तों के स्थापन में बड़ी बाधा बन कर उभरती है । जब धारणाएं टूटती हैं तो मन में बसे पूर्वाग्रह भी टूटते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन्द्र धनुष का गुम रंग एक ऎसी ही कहानी है जो अमेरिका जैसे विकसित देश में अश्वेतों को लेकर फैले दुष्प्रचार के भ्रम को तोडती है।अजय और अमिता जैसे भारतीय दंपत्ति जो नौकरी के सिलसिले में अमेरिका की अश्वेत बस्ती में रह रहे हैं, उनके जीवन अनुभवों के माध्यम से अश्वेतों के प्रति फैली गलत धारणाओं को यह कहानी तो

जीवन प्रबंधन को जानना भी क्यों जरूरी है

            जीवन प्रबंधन से जुड़ी सात बातें

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज