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छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायिका उषा बारले को पद्मश्री सम्मान chhattisgarh ki pandavani gayika usha barale ko padmashree samman

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार 22 मार्च को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायिका उषा बारले Pandwani singer Usha Barle को पद्मश्री पुरस्कार से जब सम्मानित किया तो यह कला जगत के लिए संतोष का बिषय था। साधारण तबके का जीवन जीते हुए उषा बारले ने लोककला को जिस ऊंचाई तक पहुंचाया, यह उसी मेहनत का परिणाम था जब कि  उन्हें  माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों प्राप्त पद्मश्री सम्मान मिला 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से पद्मश्री सम्मान ग्रहण करते हुए उषा बारले

उषा बारले अपने एक वक्तब्य में  बताती हैं कि उन्होंने जीवन में आर्थिक तंगी का समय भी बहुत करीब से देखा। वे उस समय को जब  याद करती हैं तो उनकी आंखे नम हो जाती हैं। उन्होंने इस वक्तब्य में  बताया है कि गृहस्थी चलाने के लिए वे भिलाई सेक्टर-1 की बस्ती में रहकर केला, संतरा व अन्य फल भी कभी बेचा करती थीं । वह खासा संघर्ष भरा दिन था। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। पंडवानी के अलावा अनेक लोक विधाओं में भी वे पारंगत हैं । भारत सरकार ने उन्हें पंडवानी के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना है जिसकी वे हकदार भी हैं।

जीवन के बदलते दिनों में उषा बारले का अनुभव:

वे बताती हैं  "पति ने पढ़ाई की और फिर आईटीआई किया। इसके बाद उनकी बीएसपी में नौकरी लगी। तब जाकर घर के हालात में सुधार हुआ। ईश्वर की कृपा से पंडवानी गायन के क्षेत्र में मैंने लगातार काम किया। इससे देश-विदेश में कार्यक्रम पेश करने का मौका भी मिला।"

विदेशों में भी पेश किया है उन्होंने पंडवानी:

उषा जी अमेरिका और लंदन के 20 से अधिक शहरों में पंडवानी गायन पेश कर चुकी हैं। इसी तरह से भारत में रांची, असम, गुवाहाटी, गुना, भागलपुर, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हैदराबाद, हरियाणा, कोलकाता, जयपुर में पंडवानी गायन से वे अपनी पहचान बना चुकी हैं।

उन्हें पदम् श्री मिलने पर छत्तीसगढ़ को गर्व महसूस हुआ है। यह एक सच्चे कलाकार का सम्मान है।

पंडवानी गायिका उषा बारले का परिचय:

ऊषा बारले कापालिक शैली की पंडवानी गायिका हैं। 2 मई 1968 को भिलाई में जन्मी उषा बारले ने सात साल की उम्र से ही पंडवानी सीखनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने तीजन बाई से इस कला की रंगमंच की बारीकियां भी सीखीं। उनकी पंडवानी छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयॉर्क, लंदन, जापान में भी पेश की जा चुकी है। गुरु घासीदास की जीवनी को पंडवानी कला के माध्यम से सर्वप्रथम प्रस्तुत करने का श्रेय भी उषा बारले को ही जाता है।

उषा बारले को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा 2016 में गुरु घासीदास सम्मान भी दिया गया था।उषा बारले 1999 में स्वर्गीय विद्याचरण शुक्ल की अगुवाई में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन से भी जुड़ी थीं और जेल भी गयी थीं। इस बात से उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता भी प्रमाणित होती है।

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